काव्य : नेताजी का चुनाव प्रचार – सरोज लता सोनी भोपाल

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नेताजी का चुनाव प्रचार

हुआ है प्रचार खत्म,
उतरे हैं वेष छद्म |
नेताओं की नौटंकियाँ,
घर में समाई हैं||

स्वागत में फूल सजे,
द्वारों पे तोरण बँधे |
सजनी सजा के थाल,
द्वारे पे ही आई है ||

हुआ ये कमाल कैसे?
न हुआ धमाल कैसे ?
लगता है सजनी ने,
लाटरी लगाई है ||

सजनी के पास बैठे,
पूछा नेताजी ने ऐसे,
रुपयों की ढेरी गोरी,
कहाँ से तू लाई है ||

बीबी बोली रोज-रोज
वादे तुम कर रहे|
आज पूरा करने की,
बारी अब आई है ||

बोले नेताजी कहाँ से,
हमने किये थे वादे!
अभी- अभी हमने तो,
ड्यूटी ही निभाई है||

बीबी बोली रोज आते ,
यूँ ही गड्डियांँ थमाते।
कभी बहना भी कह ,
गर्दन झुकाई है ।।

काला चश्मा नैन पर,
नेताजी का रूप धर ।
माताजी समझ कभी,
पैर भी छुआई है।।

नन नन नेता कहे,
बीबी इठला के कहे ।
अब सच मान जाओ ,
फोटो भी खिंचाई है।।

सुनते ही लाले पड़े,
नेताजी के होश उड़े|
सारी की सारी नौटंकी,
हुई धराशाई है||

सरोज लता सोनी
भोपाल

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