काव्य : अब दिखाई नहीं देते – संजय वर्मा”दृष्टि” मनावर जिला धार

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अब दिखाई नहीं देते

खुशियां चहुंओर बिखरी
भय हुआ कोसो दूर
आम,अंगूर,आइसक्रीम
बेचने वाला
लगा रहा बे रोक आवाज
सब्जी,दूध वाला
कुछ ढूंढ रहा
जो उसकी बंदी के ग्राहक थे
गर्मी में बाहर आंगन में
पानी के छिड़काव में
बैठते थे
अब दिखाई नही देते
ये लोग अचरज में रहे
समझ मे नही आया
क्यों नहीं दिख रहे
क्योंकि आज घर पर ताला
लगा हुआ देख
बुलावा,पत्रिका देने वाले
ताला देख पलट जाते
इलेक्ट्रॉनिक की दुनिया में
खोए लोग
पड़ोस में कौन रहता
उन्हें बताने की फुरसत कहा
कोरोना पहली लहर में
अपनों को निगल गया
सूनी गलियां छोड़ गया
बस यादें ही बची
और आंसू बचे
जो गलियों में जाते ही
आंखे गीली कर देते
कई लोगों के साथ
अच्छा नहीं हुआ
किसी की माँ
किसी के पिता
किसी का भाई
किसी की बहन
रिश्ते खो से गए
भला हो वैक्सीन का
जो अब सब को लगी
देर होती तो
कई मोहल्ले
लगने लगते श्मशान से।

संजय वर्मा”दृष्टि”
मनावर जिला धार मप्र

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