

व्यंग्य :
आम आदमी को चूसते नेता
हमारा देश आम आदमियों का देश है, जिसमें कुछ खास आदमी इन आम आदमियों पर शासन करने के लिये ही पैदा हुए है। असल में देश की राजनीति आम आदमी के इर्द-गिर्द होती है जिसमें आम आदमी खुद मुदद्ा होता है, जिसके मुद्दों पर सवार होकर नेता संसद, विधानसभा पहुॅचते है। आम आदमी, जिसका कोई वजूद नहीं, जिसकी कोई फरियाद नहीं सुनता, जिसका भी दिल चाहे वह आम आदमी को फुटवाल की तरह किक मार कर खेले, वह किक पर किक खाकर खामोश रहता है। आम आदमी होना यानि दीन, असहाय, बेसहारा, लाचार एवं मजबूर होना है, जिसका दुनिया में जीना भी मुश्किल और मरना भी मुश्किल। आम आदमी मुंगेरीलाल के हसीन सपनों में जीने वाला, मुसददीलाल की तरह आफिस आफिस में भटकते हुए उपहास का पात्र बना हुआ है। देश में आम आदमी न हो तो खास आदमी मर ही जायेगा, इसलिये सभी सरकार के माननीय नेतागण आम आदमी की पीठ पर बेतहाशा मॅहगाई के कोड़े मारकर उसका लहू ही नहींं बल्कि खून के ऑसू रूलाकर सरकारी राहत का मल्हम लगाकर हमदर्दी जता मसीहा बने हुए है। अगर आम आदमी का दिल खोला जाये तो वह इन सारी अव्यवस्थाओं से इस कदर नाराज और गुस्से में है कि उसका दिल चाहता है कि वह पूरी दुनिया को आग के हवाले कर दे, पर खुद के पेट में जल रही आग उसे अभागा बनाये हुए है।
खास हो या आम, इनकी नजर में तो आम आदमी आम ही है। गन्ने की तरह आम भी चूसा जाता है, नेता हो या सरकार, प्रशासन हो या शासन सभी मिलकर आम आदमी को चूसते है और ये हर आम को पका, मीठा और सुस्वादु समझते है, जिस सरकार को जिस बात में मजा हो, उसी मजे को लेने के लिये सारे सरकारी नुमाईन्दे अपनी सुविधानुसार खास-आम को चाकू से चीरा लगाकर फॉके बनाकर अपने दॉतों से कुचलकर खाते है? ये लोग आम नागरिक के आम या खास होने पर आम को अपनी दोनों मुटिठयों में कसकर अपनी अॅगुलियों से धीरे धीरे दबाकर मसलकर पिलपिला रसीलेदार बनाकर चूसना नहीं भूलते। यही नहीं चुनाव के समय सभी प्रत्याशियों में आम मतदाताओं को अपने बाप की जागीर समझ कर आम की तरह इस्तेमाल कर मतदान रूपी रस पीने के बाद ये उन्हें गुठली की तरह फैंकते है? चुनाव से पूर्व आम आदमी नेताओं की नाव का खिवैया बन जाता है और नेता आम आदमी को देवता समझ उसके चरणों में लोट लगाता है। चुनाव कोई भी हो, वोट डालने के लिये आम आदमी महत्वपूर्ण है। आम आदमी ही बड़े नेताओं की सभा में प्रत्याशियों की रैलियों की शोभा बढ़ाता है, भरी दोपहरी हो, रात हो, बरसात हो, ठण्ड हो, भीड़ की शकल में आम आदमी ही होता है। भीड़ का रिमोट कन्ट्रोल नेता के हाथ में होता है और नेता इन आम आदमियों से नारे लगवाये, लाठी-पत्थर चलवाए, मकान-दुकानों को बंद कराये, उनमें आग लगवाए, बसों पर पत्थर बरसवाए, आग लगवाए, मन्दिर मस्जिद तुटवाए, बलि का बकरा हर जगह आम आदमी ही होता है। वोट डालने के बाद परिणाम आते ही आम आदमी धोबी का कुत्ता बना दिया जाता है, न जीती पार्टी उसे पहचानती है, न हारी उसे जानती है।
नेता जाल बिछाता है आम आदमी उसके लोकलुभावने वायदों-घोषणाओं में फस जाता है। चुनाव से पहले आम आदमी को सुनहरे सपने दिखाये जाते है कि घर-घर में दूध-घी के कुए खुदवायेंगे, प्रत्येक घर में साल भर का अनाज, बिजली, पानी, खातों में हर महिने मुफ्त का रूपया जमा कराने से लेकर सैकड़ों छोटी बड़ी घोषणाओं के उपहार देने की बात ऐसे करते है जैसे ये सभी कुबेरपति हो, इनके पास सोना-चान्दी की खदानें हो, खुद के घरों में नोट छापने की टकसाल लगी हो, या इन्द्र का अक्षयपात्र या कामधेनु गाय प्रत्येक के दरवाजे पर खड़ी है जिससे जितना भी, जो भी मॉगे वह पूरा लेकर आम आदमी को दे देंगे? आम आदमी के लिये गरीबी रेखा की पात्रता के लिये क्या मापदण्ड है यह बात ही बेमानी है, वह तो गरीबी में ही रहता है, पर पैसेवाले गरीबी रेखा का लाभ उठाते है। आम आदमी राशनकार्ड के रंगों में ही उलझा रहता है और कि गरीबी रेख कहॉ से शुरू होगी और कहॉ समाप्त होगी, उसे तो फिरकी बनाकर पीला राशन कार्ड, हरा राशन कार्ड, सफेद राशन कार्ड, में ही उलझाकर उसके हिस्से की गरीबी समाप्त कर दी जाती है।
जरा विचार कीजिये देश पर कितना कर्ज है, प्रदेश कितने कर्जे में डूबा है, हर नागरिक पर डेढ़ दो लाख रूपये का कर्ज ये नेता पूर्व ही लेकर बैठे है, तो यह सब मुफ्त में इनसे मुक्ति भी नहीं दे सकते तब इनके शेष सभी वायदे आकाश में छाये घने काले बादल की तरह है जो धरती पर घनघोर बरसा कर शहर, गॉव को डुबोने के अलावा कुछ नहीं करते, ऐसे ही इनके वायदे है जिनमें देश का हर नागरिक डूबा हुआ है। जिस नेता का अपना कोई चरित्र नहीं हो, पूरी तरह चरित्रहीन होते हुए दलों के दलदल में फॅसे भ्रष्ट, बेईमान, धोखेबाज, मक्कार अपराधी,अनैतिक हो, उनके लोग जेल से भी चुनाव लड़कर जीत जाये, वे इन सारी लोक लुभावनी घोषणाओं को पूरा करने के लिये आम आदमी को ही अलादीन का चिराग समझ कई प्रकार के अनाप-शनाप टेक्स लगाकर उससे ही तो सरकार का खजाना भरेंगे, फिर उस खजाने में जो आपने गागरों से जमा किया है,उसमें से एक-दो चम्मच चरणामृत की तरह देकर उल्लू बनाना इनका काम रहा है। आप आम आदमी है जिसके चरित्र की गारन्टी है पर आपको खुद के लिये या बच्चों के लिये चरित्र प्रमाणपत्र की जरूरत हो तो चरित्रहीन अधिकारियों को आवेदन देकर चरित्र प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिये रिश्वत देना होता है। जबकि आम नागरिक ही खास बने नेतानुमा चरित्रहीनों के हवाले देश और सरकार की बागडौर सौंपते है। संविधान की कसमें खाकर सरकार बने ये दागी चरित्र के उजले खास लोग बगुला भगत बन संसद-विधान परिषद में कानून विधान के निर्माता हो जाते है, तब नैतिकता और चरित्र ऑसू बहाते शर्मसार हो आत्महत्या करने को विवश होते है।
समय बदलाव का है, निर्वाचन आयोग को चाहिये कि वह सांसद व विधायक के चुनाव के लिये किसी भी जिले के किसी भी शासकीय अधिकारी या कर्मचारी की सेवाए लिये बिना सभी आम नागरिक मतदाताओं के लिये एक तारीख सुनिश्चत कर पहले अपने-अपने लोकसभा एवं विधानसभा के लिये योग्य नीतिकुशल होनहार, प्रतिभासंपन्न शिक्षित प्रतिनिधि का नाम भिजवाने का आग्रह करें, फिर जनता द्वारा भेजे गये नामों में एक-एक नाम को छॉटकर राजनैतिक दलों को सौंपे ताकि वे उन्हें अपने दल के प्रत्याशी के रूप में स्वीकृति प्रदान करें। इस व्यवस्था से प्रत्याशियों को किसी भी पार्टी से टिकिट खरीदने का आरोप नहीं लगेगा और पार्टिया के तथाकथित जमे-जकड़े नेताओं की टिकिट बेचने की दुकान बंद हो जायेगी। करोड़ों में टिकिट बेचने का कारोबार ध्वस्त हो जायेगा। राजनीति में हैसियत वाले धन्नासेठ अपनी पूंजी लगाकर टिकिट खरीदने बेचने से मुक्त होगे और तब आम व्यक्ति भी किसी भी दल से चयनित होने पर बड़े दलों से चुनाव लड़ सकेगा। राजनीति के पॉच साला कारोबार में नफा ही नफा है इसलिये कई पार्टी विशेष देश के प्रत्येक आम व्यक्ति को अपनी पार्टी का मेम्बर बनाकर उसकी स्वतंत्र नागरिकता छीन अपने दलों का पट्टाधारी बना खुद को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर रहे है। देश के आम नागरिक हो या खास नागरिक, यह प्रतिस्पर्धा उनसे उनकी निजता, उनकी मौलिकता, उनकी नागरिकता उनकी संप्रभुता छीनकर अपनी पार्टी का सदस्य बनकर उनके लिये झण्डा, डंडा और चंदा का बोझ डालकर उनकी हालत बंजारे की बैलगाड़ी के नीचे चलने वाले कुत्ते की हैसियत से ज्यादा हैसियत का न होने का बना रही है, जो खुद के लिये भी नाखुद बन कर रह जाये और पार्टी का कार्यकर्ता रहते जिंदगी भर सारी उम्मीदें दूसरों से ही करता रह जाऊॅ।
कई तीज-त्यौहार आते है, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, विश्वपर्यावरण दिवस, मजदूर दिवस, न जाने कितने तरह के दिवस आते है, जाते है पर कभी ‘‘आम आदमी दिवस‘‘ नहीं आता है। इसलिये आम आदमी का हर दिन एक सा ही बीतता है, वह अपने लिये सभी से उम्मीदें करता है। देश का हर तबका आम आदमी से शुरू होता है और आम आदमी पर खत्म होता है। सरकार आम वजट में, रेल वजट में सालाना आम आदमी को ठेंगा दिखाती है, उसे उल्लू का पटठा समझ वजट में कुछ नहीं मिलता, कोई रोजगार योजना, मनरेगा में महिने में 15 दिन तक की मजदूरी नहीं मिलती। कर्ज लेकर शिक्षित इंजीनियर, डिग्रीधारी बच्चों को रोजगार नहीं,, आरक्षण का लाभ नहीं, सरकारी बैंकेन्सी के इंतजार में ओव्हरऐज होने पर भविष्य का सपना चोपट, बस आम आदमी पर सवार होकर सरकार देश-प्रदेश पर शासन करना चाहती है। आम आदमी उनके लिये धरतीरूपी धेनु का दूध है, धनवंतरी का अमृत कलश है, अन्नपूर्णा का प्रसाद है। आम आदमी उनके लिये आम है, जिसे पका, पिलपिला कर ये मजे से चूस रहे है। भूल से आम आदमी बेरूखा, बेस्वाद खटटा साबित हो तो ये पूरा सिस्टम उसे खटाई के लिये, अचार के लिये सुस्वादु बनाकर चटकारे लेकर चूसकर खाने के बाद फैक देता है, बस आम आदमी की इतनी ही उन्हें जरूरत है, इतनी ही उनके सामने आम आदमी की औकात है।
– आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार,
श्रीजगन्नाथधाम काली मंदिर के पीछे,
ग्वालटोली नर्मदापुरम म.प्र. मोबाइल 9993376616

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
