

हम बुजुर्ग है तो क्या
हम बुजुर्ग है, तो क्या?,हमे भी हंसना आता हैं।
आजकल कई लोग तो,हंसने को क्लब मे जाता हैं।
सुना है हमने ज्ञानी से, हंसने से खून बढ जाना हैं।
गर जरूरत पड़ी किसी को, तो खून दान कर आना हैं।
घर मे अकेले बैठे बैठे तो,दिल हमारा बहुत घबराता हैं।
बाहर चार दोस्त मिले तो,मन का गुलशन खिल जाता हैं।
जीने दो पोते पोतियों के संग,वो ही हमारी ऊर्जा हैं।
उनसे ही रौनक चेहरे पर, वरना जाते हम मुरझा हैं।
चार दिन के मेहमान है हम,पीछे सबकुछ तुम्हारा हैं।
जीत गए सारे जग से हम, सिर्फ अपनों से ही हारा हैं।
चाह अंतिम यही हमारी अब,अंधे को देखते करना हैं।
मरणोपरांत भी मिलेगी दुआएं,चक्षु दान तो करना हैं।
जन्म लिया तब रोएं होंगे,अब हंसते हुए ही जाना हैं।
हम बुजुर्ग है तो क्या मुथा, हमे भी हंसना आता हैं।
– छगनलाल मुथा-सान्डेराव
भाईन्दर (महाराष्ट्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
