काव्य : हम बुजुर्ग है तो क्या – छगनलाल मुथा-सान्डेराव भाईन्दर (महाराष्ट्र)

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हम बुजुर्ग है तो क्या

हम बुजुर्ग है, तो क्या?,हमे भी हंसना आता हैं।
आजकल कई लोग तो,हंसने को क्लब मे जाता हैं।
सुना है हमने ज्ञानी से, हंसने से खून बढ जाना हैं।
गर जरूरत पड़ी किसी को, तो खून दान कर आना हैं।

घर मे अकेले बैठे बैठे तो,दिल हमारा बहुत घबराता हैं।
बाहर चार दोस्त मिले तो,मन का गुलशन खिल जाता हैं।
जीने दो पोते पोतियों के संग,वो ही हमारी ऊर्जा हैं।
उनसे ही रौनक चेहरे पर, वरना जाते हम मुरझा हैं।

चार दिन के मेहमान है हम,पीछे सबकुछ तुम्हारा हैं।
जीत गए सारे जग से हम, सिर्फ अपनों से ही हारा हैं।
चाह अंतिम यही हमारी अब,अंधे को देखते करना हैं।
मरणोपरांत भी मिलेगी दुआएं,चक्षु दान तो करना हैं।

जन्म लिया तब रोएं होंगे,अब हंसते हुए ही जाना हैं।
हम बुजुर्ग है तो क्या मुथा, हमे भी हंसना आता हैं।

छगनलाल मुथा-सान्डेराव
भाईन्दर (महाराष्ट्र)

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