

ऊँ नमः तत्सय
माता के दर्शन करने
घर से निकली थी
सोचा —
बहुत सी मन्नते मांगनी है
साल में एकबार ही तो आती हैं
घर-घर में खुशियाँ ही लाती हैं
जगतजननी भूल-चूक माफ करना
अततायियों को साफ करना
रावण कोई राक्षस नहीं
मन की विकृति है
पाँच कर्म- इन्द्रिया
पाँच ज्ञान- इन्द्रिया
यही दशानन् है।
मैं उस रावण का अंत चाहती हूँ
मैं सबका कल्यान चाहती हूँ
मैं भरा पूरा परिवार चाहती हूँ
मैं प्रिय का जनमों तक साथ चाहती हूँ
मैं सबका विकास चाहती हूँ
मैं बडों का ईज्जत चाहती हूँ
मैं छोटों को प्यार चाहती हूँ
मैं वसुधैव-कुटुम्कम् चाहती हूँ
यह क्या ??
दर्शन करते सब भूल गई
अप्रतिम अलौकिक अंबिके
क्या आप अंतर्यामी हैं
या सर्व भूतेषि
नमः तत्सय…नमः तत्सय।
– रेखा सिंह
खराड़ी ,पुणे
महाराष्ट्र

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

रेखा सिंह जी,
बहुत अच्छी सोच। बधाइयाँ!