काव्य : आज की मातृ शक्ति – सुनीता जौहरी वाराणसी

192

आज की मातृ शक्ति

नई रुप की यह मां नार नवेली
नव-नव,नित-नित एक पहेली,

नव -परिवेश, नव-नव जिज्ञासा
नव-समाज की नव -अभिलाषा,

आज की माता अबला न सबला
नव – तकनीक ने जीवन है बदला,

युगों से नारी को बांझ कहनें वालें
खुशी से सरोगेट मां के बच्चे पालें,

शोषित परंपरा के सब तोड़ती द्वार
शिक्षित हो, बच्चें को दें शिक्षा का उपहार,

अपनी वेशभूषा को बदल -बदलकर
मोबाइल से लोरियां सुना -सुनाकर,

बच्चों के संग- संग वो भीअब हंसती
घर-समाज सबके दिल में है वो बसती

मां की ममता, वात्सल्य और गरिमा को
देखों कायम कर रही है आधुनिक मां को ,

घर बाहर की संभालें दोहरी जिम्मेदारी
स्नेह और संवेदनशीलता से करती यारी,

मां की इस उथल-पुथल को जानो
ईश्वर की अनुपम कृति को पहचानो।।

© सुनीता जौहरी
वाराणसी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here