काव्य : शंभूकरि माता – किरण काजल बेंगलुरु

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शंभूकरि माता

शंभूकरि माता नाम अति प्यारा
भक्तों को सदा सुख देती जगदंबा
किंतु कालरात्रि नाम पड़ा मां का
उनके इस भयानक रुप के कारण
काजल के समान रंग मां का
केश खुले और गंदर्भ पर बैठे
गले में पहनें विद्युत की माला
नासिका से धधक रही मां के
क्रोध की अग्नि समान ज्वाला
दानवों को भय देने वाला किंतु
भक्तों के लिए अति सौम्य है माता
शंभूकरि रुप अति निराला
सुलभ और ममतामयी है माता
अनुपम कृपा बरसाती माता
अभय वरदान देती सदा
दानवों का काल है माता
भक्तों का करती बेरा पार है माता
आए जो मुश्किल मां के संतानों पे
बिजली बन कर गिरती है मां दुष्टों पे
गुड़ का भोग है मां को अति प्यारा
नीले रंग से प्रसन्न होती है शंभूकरि माता
खड्ग और मुसल शस्त्र उठा कर
भ्रमण करती सम्पूर्ण सृष्टि पर माता
दानवों का नाश भक्तों का उत्थान
कालरात्रि रूप में करती मैया सदा
जगत कल्याण ……!!
दुष्टों से भर गया ये सारा संसार है
आओ मां करना तुझे अब संघार है
ना जानू पूजा विधि ना मंत्र उच्चारण ही
फिर भी करती हूं मैं तेरा हे कालरात्रि आवाह्न
धरा को पाप मुक्त करके
धरती को स्वर्ग बना दे
दानवों का करके भक्षण
धरा से अंधकार मिटा दे
सुख का उजियारा फैला दे
भक्तों का संताप मिटा दे
मां मेरी भी बिगड़ी बना दे
चरणों से अपने लगा लें।

किरण काजल
बेंगलुरु

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