काव्य : सुबह – डॉ ब्रजभूषण मिश्र भोपाल

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सुबह

नदिया तीर, प्रातः प्रति,
स्नान, करती है सुबह
पूर्व से आती,धूप में
ध्यान,करती है ,सुबह

मंदिरों से ,उद्घोष सुनती
प्रार्थना,करती है सुबह
घंटियों की ,ध्वनि गूंज सुनती
अर्चना,करती है सुबह

पुष्प हारों में, चमकती है
फूल,पत्र,जल संग चढ़ती
चंदन,धूप,दीपक बन पूजती
ब्रज,देवी,देवताओं को,सुबह

डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल

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