

लघुकथा
शेरो वाली
शुलभा काफी डरी -डरी रहती थी।कुछ दिन पहले ही निखिल की कार एक्सीडेंट में जान चली गई थी।निखिल के जाते वह एकदम अकेली हो गई थी।निखिल के साथ उसका प्रेम- विवाह हुआ था।इस कारण मायका से भी रिश्ता टूट गया था।शुलभा चार-चार बेटियों को लेकर अपने आप को काफी असहाय महसूस कर रही थी।
वह अपनी बेटियों को हमेशा समझाती बाहर कोई भी कुछ बोले तो जवाब मत देना।अनदेखा कर के चलना।अच्छे से स्कूल जाना। तुम्हारे पापा जी नहीं रहे।मैं अकेले क्या करूंगी?
बेटियाँ माँ की परिस्थिति से अवगत थी।मुहल्ले के मनचले लड़के उसके घर को बेटियो वाली का घर कहते थे। आसपास मंडराने रहते थे।
नवरात्री का त्योहार चल रहा था।पस के स्कूल में दांडिया हो रहा था। छोटी बिटिया कामिनी दांडिया खेलने के लिए जिद करने लगी।
शुलभा बेटियों को तैयार करके समझा -बुझाकर स्कूल में दांडिया खेलने भेजी।खत्म हेते -होते रात्री के नौ बज गये थे।चारों सहमे हुए लेकिन तेज कदमों से गर आ रही थी।तभी कुछ मनचले लड़के उनके पीछे पड़ गये। यह देख चारों लड़कियाँ काफी घबरा गई।जैसे तैसे घर पहुँच अपनी माँ से लिपट रोने लगी।शुलभा घबराई नहीं अपनी बेटियों से पहले घटना की जानकारी लीं।ढाढस बंधाया।फिर ना जाने कहाँ से हिम्मत आ गई।आँगन से चार डंडे ऊठा लाई।सब बेटियों को एक -एक पकड़ा बोली डरना मना है।अब नहीं।जा सबको सबक सिखा दो।उसकी बेटियाँ डंडा ले दौड़ पड़ी लड़कों की ओर।जय भवानी…जय माँ शेरोवाली।घर के बाहर खड़े लड़के लड़कियों का यह रौद्र रूप देख काफी डर गये।फिर कभी तंग करने की हिम्मत उन लड़को में नहीं हुई।
– रेखा सिंह
खराड़ी ,पुणे
महाराष्ट्र

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

हिंमत बढ़ानेवाली, सकारात्मक लघुकथा। बहुत बहुत बधाइयाँ!😊💐
वाह क्या बात है। रेखा जी आपने लड़कियों में जान फूंक दी। मैं बधाई नहीं दूंगा। धन्यवाद कहूंगा।