काव्य : हे ! मोक्षदायिनी माँ – भार्गवी रविन्द्र बेंगलुरु

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हे ! मोक्षदायिनी माँ

हे ! मोक्षदायिनी माँ …..
ममता की शीतल छाया तू , प्रेम की अविरल धार तू
आज दिखा अपना रौद्र रुप, कर महिषासुर का संवार तू।
तम की चादर ओढ़े अज्ञान की निद्रा में लीन आज विश्व
झँझोड़ दे उसका अस्तित्व,मिटा अंतर्मन से अंधकार तू ।

मानव मन देदीप्यमान हो ,प्रेम की अखंड जोत जले निरंतर
चकनाचूर कर उसका घमंड,परास्त कर उसका अहंकार तू
लोभ के दलदल में प्रति पल धँसता जा रहा समस्त विश्व
उठा अपना खड्ग कर धराशायी लालच की उठती दीवार तू।

धारण कर अपना रौद्र रुप ,हे मोक्षदायिनी पापनाशिनी माँ!
हो सर्वनाश उनका ,विफल कर हर आतंकवादी का वार तू
निर्भय होकर जी सके हर निर्भया, मासूम बचपन फले-फूले
हर बलात्कारी,अत्याचारी से छीन ले जीने का अधिकार तू।

अज्ञानता को शक्ति मान इंसान समझे बलशाली
ये नादान है , ये अनजान है , इन में ज्ञान का संचार कर
हे मंगलकारिणी माँ आज मानव पर दानव का राज है
अपने भक्तों का हाथ पकड़,राह दिखा ,उनका उद्धार कर ।

भार्गवी रविन्द्र
बेंगलुरु.

1 COMMENT

  1. Maa’m Namaskaar 🙏🙏Bahut sundar Ma ka aahvaan kiya hai Aapne,aapki divya lekhni ko mera Pranaam,Jai Mata Di 🙏🙏💐💐

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