लघुकथा : तलाश – आरती श्रीवास्तव जमशेदपुर

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लघुकथा

तलाश

शाम का धुंधलका छा गया था। रात होने ही वाली थी। नेहा अपनी कपड़ों की अलमिरा से गहनो की डिबिया सहेज रही थी,तभी कुछ छन से गिरने की आवाज आई,अब वह चारों तरफ ऊपर नीचे खोज बिन करने लगी कि आखिर गिरा क्या है?
तभी उसकी नजर एक छोटी सी कर्णफूल पर पड़ी,अच्छा तो यही गिरा था,आच्छा हुआ जो मिल गया,वह सोचने लगी।
लेकिन यह तो एक ही है दूसरा कहाँ गया वह परेशान हो उठी,पूरा अलमिरा व गहनों की पोटली फिर से खगांल डाली,उसे दूसरा कर्णफूल नही मिलना था सो नही मिला,वह मन ही मन सोचने लगी यह तो बिटिया की कर्णफूल है,जो शादी के पहले पहनती थी,शायद शादी के वक्त यही अलमिरा मे छोड़ गई होगी।अब वह आत्मग्लानी से भर उठी,अपनी बिटिया की एक कर्णफूल तक नही सभाँल सकी।
तेज रौशनी में भी जब उसे कही दूसरा कर्णफूल नही दिखा तो वह और उसके पति मोबाईल का टार्च जलाकर पँलग के नीचे व अलमिरा के चारो तरफ ढ़ूँढ़ने लगे,परन्तु निराशा ही हाथ लगी।उसने सोचा कि बिटिया को बताना ही उचित होगा कि उसका एक कर्णफूल भूल गया है,क्योकि पता नही उसे फिर कब आना होगा,यही सोचते हुए उसने बिटिया को फोन लगाया,और उसे बताते ही बिटिया बोल उठी”मम्मी वह कर्णफूल तो मेरे पास है पता नही तुम क्या तलाश रही हो,तभी उसे याद आया कि जिसे वह कर्णफूल समझ ढ़ूंढ़ रही थी ,वह तो उसका नाक का फूली है जो पिछले माह अपनी सहेली के साथ बाजार से खरीद कर लाई थी,और वह उसे बिल्कुल भूल चुकी थी,और उसे वह बिटिया की कर्णफूल समझ ढूंढ़ रही थी,नाक के फूली का जोड़ा का तो सवाल ही नहीं उठता,अत:जिसका अस्तित्व ही नहीं है,उसकी तलाश में वह परेशान हो रही थी,श्रम और समय दोनो व्यर्थ गया।
तभी उसे यह एहसास हुआ कि जो हमारे पास है उसकी पहचान और सही इस्तमाल ही सार्थक है,और किसके तलाश में हम भटक रहे है यह जानना निहायत जरूरी है,वर्ना समय और श्रम की बर्बादी के सिवा कुछ हाथ नही आता।

आरती श्रीवास्तव
जमशेदपुर

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