लघुकथा : कन्या पूजन – बिन्दु त्रिपाठी भोपाल

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लघुकथा

कन्या पूजन

सोलर शृंगार और स्वर्ण आभूषण से सजी धजी मिसेज चावला आज धूमधाम से दुर्गा अष्टमी की पूजा की तैयारी मे लगी हैं। कन्याएं आ चुकी हैं और मिसेज चावला उन सभी को आलता लगा कर, चुनरी पहना कर हलवा पूरी का भोजन परोसने की तैयारी अपनी नौकरानी को आदेश दे दे कर कर रही हैं।
वहीं सामने के दरवाजे पर पर्दा पकड़ कर खड़ी नौकरानी की सात वर्षीय बालिका लालायित सी सब कुछ देख रही है। अकस्मात् मालकिन मिसेज चावला की नजर उस पर पड़ती है और वे चिल्ला पड़ती हैं-“एक लड़की वहाँ दरवाजे पर खड़ी क्या देख रही है, नजर लगाएगी क्या मेरी कन्याओं को?जा भाग अंदर और अपनी माँ की मदद कर। “नौकरानी ने जब मालकिन की रौबदार आवाज में अपनी बेटी को डाँटते हुए सुना तो वह दौड़कर आई और हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई। बच्ची रूंआसी हो गई।
कन्याएँ भोजन कर के जा चुकी थीं। रात मे थकान अधिक होने के कारण मिसेज चावला गहरी नींद सो रही थी। अल सुबह एक सपना उन्होने देखा कि घर के जिस दरवाजे पर नौकरानी की बेटी खड़ी ललचाई नजरों से कन्या पूजन होते देख रही थी और उन्होंने उसे डाँट कर भगा दिया था उसी दरवाजे पर लाल जोड़े और श्रंगार से सुसज्जित किन्तु क्रोधित रूप में देवी माँ खड़ी हुई हैं।
अचकचा कर मिसेज चावला उठ बैठी ।उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका था और बेसब्री से नौकरानी और उसकी बेटी का इंतजार करने लगी। उन्हे कल की गलती का प्रायश्चित जो करना था ।

बिन्दु त्रिपाठी
भोपाल

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