लघुकथा : डांडिया की रंगीन डंडियाँ – सुमन चंदा लखनऊ

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लघुकथा

डांडिया की रंगीन डंडियाँ

घर के सामने प्लाट खाली पड़ा था | कई परिवार और उनके बच्चे उसमें झोपड़ी बना कर रहने लगे थे | सुबाह से शाम तक बच्चे झुंड बना के खेला करते थे, कभी गेंद, कभी पतंग, कभी छुपन-छुपाई | इन बच्चो में एक लड़का करीब 12-13 वर्ष का बगल के मकान की छत पर बैठ लकड़ियों के टुकड़े से कुछ-कुछ बनाता दिखता | कई बार दूर से डंडे जैसी चीज़ लाल-पीली दिखती उस पर वो पेंट करता, सजाता नज़र आता | मेरी उत्सुकता लगातार बनी हुई थी | आखिरकार ये क्या बना रहा है ?
नवरात्र का समय आ गया | लड़कियों और औरतों में ये उत्साह साफ़ दिखाई दे रहा था | इस समय नौ दुर्गा की नौ दिन पूजा होती है और घर-घर में भजन-कीर्तन का आयोजान होता है | कई जगह पांडाल में मूर्ति स्थापित होती है | घरों में भी लोग बड़े धूम-धाम से ढोलकी की थाप पर भजन गाते है और इस पर्व को मनाते है
मै भी इस बार तृतीया के दिन अपने घर पर भजन संध्या और डांडिया का नृत्य करने का निश्चय किया था | घर के नीचे तल्ले पर एक बड़ा हॉल है जिसकी पूरी सफाई की जा रही थी | घर पर संगीत के लिए ढोलकी, हारमोनियम की भी व्यवस्था की गई थी | ढोल मंजीरा कमरे में पहुचायाँ जा रहा था | पूरे कमरे में एक छोर से दूसरे छोर तक दरी बिछायी गयी थी और हॉल में फूल माला से सजाया जा रहा था | डांडिया में नृत्य करने के लिये सभी लेडीज प्रतिदिन एक घंटा प्रैक्टिस करके जा रही थी | मैं कमरे का निरीक्षण करने रोज जा रही थी और बाहर गेट तक पूरी सजावट और बैठने की व्यवस्था की जा रही थी | मैं जब गेट के पास पहुँची तो सामने वाला लड़का हाथ में कुछ रंगीन लिए खड़ा दिखाई दिया | पूछने पर उसने लाल-पीले हरे रंग से सजे करीब आठ-दस डंडिया दिखाई | सब बहुत खूबसूरत पेंट किये हुए थे और डंडे के ऊपर घुंघरू भी लगा रखा था | मैं उसकी कलाकृति देखती रह गयी | उसने ये डंडियाँ डांडिया नृत्य के लिये बनाया था | उसने बोला आंटी ये बाजार में आपको बहुत महंगे मिलेंगे, मैं केवल तीस रूपए का जोड़ा बेच रहा हूँ | मैं मंत्रमुग्ध उन डंडियों को देखते रह गयी और उसे थोडा ज्यादा दाम देकर सारे डंडे खरीद लिये |
घर पर सारी महिलायें एकत्रित हो गयी थी | आज घर पर संगीत और डांडिया की धूम थी | सभी लड़कियां और लेडीज खूबसूरत लहेंगे और घाघरे में दिख रही थी | गरबा और डांडिया नृत्य की धुन बजते ही सभी ने नृत्य शुरू कर दिया | पूरे वातावरण में माता रानी की आराधना का माहौल बना हुआ था | डांडिया के लिये जब मैंने उन सबको डंडे दिये, सब एकसाथ हो बोल उठीं भाभी इतना सुंदर डंडे कहाँ से मंगवाए हो | मैंने जब लड़के की बात बताई तो सभी ने अपने-अपने घर में होने वाले प्रोग्रामों के लिए डंडियों का ऑर्डर कर दिया |
माँ दुर्गा की आराधना के साथ-साथ मेरा मन बहुत ही प्रसंचित हो उठा | छोटे-छोटे कलाकारों से हमारा समाज भरा हुआ है, हम उनके सामान कभी खरीद नही पाते | आज उस पर्व में उस लड़के की चीजे सारी बिक्री हो जायेंगी और उसे भी त्योहार मनाने के लिए दो पैसे हाथ आ जायेंगे, ये सोच-सोच कर खुश होकर मैं भी डांडिया नृत्य में शामिल हो गयी|

सुमन चंदा
लखनऊ

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