

लघुकथा
देवी आराधना
“भाविनी, तुम नवरात्रि में अपनी सेल्फ डिफेन्स और जुडो की क्लास तो बंद रख ही सकती हो। उस समय तुम्हारे व्रत भी होते है। फिर तुम्हारी ये क्लासेस सुबह- सुबह होती हैं। इस कारण तुम हमारे साथ देवी-मंदिर में दर्शन के लिए भी नहीं जा पाती।” माँ, उसे प्यार से समझाने लगी।
“नहीं माँ मैं क्लास बंद नहीं कर सकती। जहाँ तक व्रत की बात है तो मैं उन लड़कियों के बीच जाकर और अधिक ऊर्जावान हो जाती हूँ।”
“मान लो, अगर बंद कर भी दोगी तो तुम कौन सा उनसे पैसे लेती हो जो कोई बड़ा नुकसान हो जाएगा?” माँ कुछ कठोर हुई।
“माँ, मैं उन गरीब बच्चियों को मुफ्त में आत्मरक्षा के गुण इसलिए सिखाती हूँ क्योंकि मैं चाहती हूँ कि उनमें समाज में फैले राक्षसों से सामना करने की शक्ति का संचार हो। माँ, यह भी तो माँ दुर्गा की सच्ची आराधना है ना?
“हाँ बिटिया, सही कह रही हो। यह भी सच्ची देवी आराधना ही है।”
– सपना सी.पी. साहू “स्वप्निल”
इंदौर (म.प्र.)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
