

कहानी
सफेद घोड़ा
गौरी सफाई में इतनी व्यस्त थी और होती भी क्यों ना दीपावली जो आने वाली थीl घर का एक कौना कोना जगमगआना चाहिए गौरी के पति ने गौरी पर ज्यादा भार ना पड़े दो मजदूरों को लगा दिया था, गौरी के पति बढ़े ही दिल के बड़े थे उनके घर में कोई भी काम करने आता था चाय पानी नाश्ता खाना सब देते थे यहां यहां तक की चाय तमाखू का भी इंतजाम कर देते थे रमेश ने गौरी से कहा सुबह के आए हुए हैं चाय जरूर दे देना और हंसते हुए चले गए गौरी उनकी आदतों से परिचित थी उसने भी मुस्कुरा कर कह दिया मुझे पता है मुझे क्या करना है मैं चाय खाना नाश्ता सब दे दूंगी गौरी को ऑफिस का भी काम रहता था सोच रही थी दिवाली आने के पहले पहले सब कुछ जल्दी-जल्दी निपट जाए फिर 1 दिन जाकर शॉपिंग भी कर लाएगी बेटा अब 5 बरस का हो गया थाl
उसके भी कपड़े लाने थे तो कहीं पति के कपड़े की पूजा का सामान सब की लिस्ट बनाकर रख ली थी , साथ में नाश्ता भी बनाना था क्योंकि रमेश के कई दोस्त थे गोरी नौकरी के कारण इतना अच्छा बहुत कुछ नहीं बना पाती थी जबकि उनके दोस्तों के यहां से हर समय टिफिन लग लग के आ जाता था इस बार सोच रही थी कुछ अच्छा बना कर सबको खिलाएगी उसने जल्दी से चाय बनाई और काम करने वाले भैया को आवाज दी लो भैया चाय पी लो और फिर सब निर्देश देना शुरू कर दिया सोफा यहां रख देना पलंग ऐसे किसका देना यह सारी किताबें निकालकर संभाल यह तो साफ करके वह भी हां में हां मिलाता जा रहा था यह सब काम करते-करते कब दोपहर हो गई पता ही नहीं चला उसने जल्दी-जल्दी खाना टेबल पर लगाया और देखा मजदूर भैया भी खाने बैठ रहे हैं वह अपनी रोटी एक तरफ पीठ कर बैठने लगा.तब तक गोरी के पति भी घर आ चुके थे बेटे के साथ खाना खाने के बैठने से पहले बोले उसको सब कुछ दे देना.गोरी ने भी एक थाली लगाई और मजदूर की और बढ़ा दी.पहले तो वह मना करता रहा फिर फटाक से थाली पकड़ ली.खाना खाने के बाद बारी आई बंद कमरे स्टोर की गौरी ने पति से कहा इस कमरे की भी सफाई करवा लो रमेश ने अनूप से कहा सारा सामान निकाल कर बाहर रख दो कमरा साफ कर दो तब तक पुताई वाला पुताई कर देगा.बेटे के अनगिनत खिलौने थे.बाहर आ गया वह सफेद घोड़ा घोड़ा देखकर गौरी पुरानी यादों में चली गई सोचने लगी जब बेटा हुआ था तो दोनों कितने खुश थे बेटा जैसे ही साल 2 साल का हुआ दिनभर रमेश को घोड़ा बनाए रहता था आप पापा आप घोड़ा बन जाओ मैं आपकी पीठ पर बैठूंगा.और रमेश भी घोड़ा बनकर उसको दिन भर पीठ पर बैठाए रहते थे रमेश , थक जाते थे लेकिन बेटा मानता ही नहीं था एक दिन रमेश बाजार गए उन्हीं वहां सच में एक बहुत सुंदर सफेद और चितकबरा घोड़ा दिखा बेटे ने जैसे ही रोज घोड़े पर हाथ रखा पापा मुझे यह घोड़ा चाहिए देर किस बात की थी, रमेश ने तुरंत हो घोड़ा खरीद लिया फिर क्या था बेटा और वह घोड़ा बेटा दिनभर उसकी पीठ पर चढ़ा रहता था उसके कान खींचता रहता था सच में वह घोड़ा देखने में ऐसा लगता था और फिर उससे बेटे का लगाव देख कर , उसे बेटे के ही कमरे में रखा दिया था सारे खिलौनों से खेलने से जी भर जाए लेकिन घोड़े के कान दबाए बिना,, और घोड़े पर बैठे बिना बेटा सोता ही नहीं था धीरे-धीरे बेटा बड़ा होने लगा था घोड़ा और उससे जुड़े यादें उसका हंसना मुस्कुराना और मस्ती करना गौरी को एक एक चीज याद थी तो घोड़ा गौरी ने उठाकर दूसरी खिलौनों के साथ स्टोर में रख दिया था रंग रोगन होने के बाद एक-एक सामान जमता चला गया पर वह मजदूर ने घोड़ा अंदर नहीं जमाया जब उसने खोला बाहर निकाला था तब गौरी देख रही थी वह बड़े उससे उसे सहला रहा था उसके कान छू के देख रहा था अब शाम ढलने को आ गई थी गौरी को पता भी न चला पुताई वाला जा चुका था मजदूर भी हाथ पांव धोकर तैयार था लेकिन वह फिर जाकर उसी घोड़े के पास खड़ा हो गया था.गौरी कहने ही वाली थी कि भैया इसे अंदर रख दो.फिर उसने सोचा पहले , उसे पैसे दे दे रमेश पहले ही ₹100 ज्यादा देने को कह गया था मजदूर ने काम बहुत अच्छी तरह किया था मजदूर को कुछ बेटे के खाली टिफिन, पानी की बोतल, पुराना बस्ता, सिलेट कॉपी, तो गौरी दे चुकी थी गौरी ने कहा जो भी सामान हो कमरे का वह कमरे में पूरा जमा दो लगभग उसने पूरा ही सामान जमा दिया था लेकिन घोड़ा अभी भी बाहर था जैसे ही गौरी कुछ कह पाती उसने देखा
मजदूर ने बड़ी हसरत भरी निगाहों से घोड़े को देखा और कहने लगा सफेद घोड़ा है कितने का आया होगा गौरी ने कहा यह तो अर्पण के पिताजी लाए थे तभी मजदूर कहने लगा l फिर कहने लगा भैया क्या इससे खेलते हैं गौरी ने पूछा क्यों हां कभी-कभी मजदूर कहने लगा मेरे दो बच्चे हैं एक बेटा और एक बेटी.बेटी तो यह , टिफिन बॉटल देख कर बड़ी खुश हो जाएगी खिलौने दिए हैं बच्चे बड़े खुश हो जाएंगे और वह घोड़े को फिर, बड़ी हसरत भरी नजरों से देख रहा था गौरी समझ चुकी थी उसने पैसे मजदूर को दिए साथ में ₹100 भी दिए और कहने लगी यह घोड़ा अपने बच्चे के लिए ले जाओ यह हमारी तरफ से उसके लिए दिवाली का तोहफा है मजदूर की आंखें चमकने लगी वह खुशी से झूम उठा कहने लगा मैं आपसे कह नहीं पा रहा था मेरा बेटा कई बार घोड़े पर बैठने की जिद कर चुका है पर हमारी हैसियत कहां जो घोड़ा दिलाते इस घोड़े को देखकर मेरा बेटा इतना खुश हो जाएगा कि हम बता नहीं सकते गौरी भी खुद खुश हो रही थी दीपावली मनाने का सही तरीका तो यही है खुद भी खुश हो और दूसरों को भी खुश रखे l
– डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
उपभोक्ता आयोग सदस्य
टीकमगढ़

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
