

नवरात्रि के 9 दिनों की विशेष पूजा विधि और माता रानी की अनुपम कृपा पाने की सरल सुलभ युक्ति
१)
नवरात्री का प्रथम दिन घट स्थापना के साथ ही शुरू होती है। आराधना माँ शैलपूत्री की…आज का दिन मां शैलपुत्री को ही समर्पित है।
“माँ शैलपूत्री का वाहन नन्दी है और माता के दाहिने हाथ में त्रिशुल शोभा पाते है और बाये हाथ में कमल का फूल ।
घट स्थापना के दिन लाल रंग का विशेष महत्व होता है।
क्योंकि लाल रंग साहस शक्ति और कर्म का प्रतीक माना जाता है।आज माता को गाय के घी का भोग चढा़यें इससे सारे रोगों का नाश हो जाता है।
आज के दिन ही माता कैलाश से पृथ्वी लोक अपने मायके आती है”नौ दिनों के लिये….
इन दिनों शैलपूत्री माता का उनके मायके में खूब आदर सत्कार ,मान सम्मान और पूठा पाठ की जाती है।जिससे माता अत्यंत प्रसनन्त होती है और अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती है ।
और माँ शैल पुत्री की पूजा इसलिये की जाती है ताकि जीवन में उनके नाम के अनुरूप ही स्थिरता बनी रहें
फिर दशमी के दिन अपने स्वामी के पास कैलाश लौट जाती हैं..!
२)
नवरात्री का दुसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी को समर्पित है।
माँ ब्रह्मचारिणी”माता पार्वती का अविवाहित रूप है।
ब्रह्म का अर्थ तप्स्या और चारिणी का अर्थ आचरण
अर्थात तप का आचरण करने वाली
माँ ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में मंत्र जाप की माला
और बाये हाथ में कमंडल है ।
माँ ब्रह्मचारिणी ज्ञान और तप की देवी है।
जो भी हृदय से माँ का ध्याण करता है ।
उसे धैर्य के साथ साथ ज्ञान की भी प्राप्ति हो जाती है।
यूं तो देवी माँ को रंग लाल अति प्रिय है ।
लेकिन हर रूप का एक अलग माहत्मय होता है ।
ठीक उसी तरह हर रूप में माता का भोग और प्रिय रंग भी अलग होते है ।जिस महात्मय में जैसा स्वरूप होते है माँ के वैसी ही भोग और परिधान भी
माँ ब्रह्मचारिणी को स्वेत रंग अति प्रिय है।
तो आज के दिन माता रानी को स्वेत रंग की
चीजें अर्पित करें …!जैसे पंचामृत और मिठाई
का भोग चढ़यें!साथ ही पान,सुपारी ,लौंग अर्पित
कर ,धूप ,दीप ,अक्षत कुमकुम से माँ को मनायें ।
माँ प्रसन्न होने पर दीर्घायु का वरदान देती है।
माँ ब्रह्मचारिणी ऊर्जा का स्त्रोत है।और वो ही
इस चराचर जगत में ऊर्जा का संचार करती हैं।
और माता अपने भक्तों को आंतरिक शांति भी
प्रदान करती है।
३)
नवरात्री का तृतीय दिन माँ चंद्रघंटा को समर्पित है और
इस दिन माँ चंद्रघंटा के विग्रह की पूजा की जाती है ।
नवरात्रि में तीसरे दिन की पूजा का खास महत्व है ।
इस दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट करता है।
मां चंद्रघंटा ने यह अवतार दानवों के संघार के लिए लिया था।
मां चंद्रघंटा में त्रिदेव की शक्तियां भी समाहित है ।
माता अपने हाथों में तलवार गदा त्रिशूल और धनुष धारण करती हैं।
माता का यह रूप बहुत ही दयाद्र और शांति कारक है।।
माता के माथे पर घंटे के आकार का चंद्र है
जिस कारण चन्द्र घंटा कहलाती है”माता
माता का वाहन सिंह है और माता युद्ध के लिये
सदा उद्धत रहती है।
माता को भाता है रंगों में स्वर्ण और भोग में चढ़ाये माँ को दुध से बने मिष्ठान
सारे कष्टों को तत्काल ही हर लेगी माता और देगी है अभय वरदान
४)
नवरात्री का चौथा दिन(माँ कुष्मांडा)
अण्ड याणी(अर्थात आदिशक्ति )की पूजा की जाती है।
मां कुष्मांडा ही इस सम्पूर्ण चराचर की अधीश्वरी हैं।
जब घोर अंधेरा छाया था पृथ्वी पर तब मां ने ही
जीवन ज्योति जलाई थी सम्पूर्ण सृष्टि पर
मां ने ही इस सृष्टि की संरचना की है
मां का वाहन सिंह है और इनकी आठ भुजायें है ।
इसलिये माता अष्टभुजा कहलाती है।
इनके हाथों में धनुष,बाण,कमल-पुष्प,कमंडल,
अमृतपूर्ण कलश,चक्र और आठवें हाथ में सभी सिद्धीयों और नीधियों को देने वाला जप माला है।
मां कुष्मांडा को भोग में मालपुआ और
कुम्हरे की बलि अति प्रिय है।
कुम्हरें का सास्कृत नाम कुष्मांड है।
इसलिये माता का नाम कुष्मांडा पड़ा।
मां कुष्मांडा का वास स्थान सूर्यमंडल के भीतर है।
मात्र मां कुष्मांडा में ही यह क्षमता है कि
वो सूर्य मंडल के भीतर निवास कर सके !
अन्य किसी देवी या देवता में यह क्षमता नहीं है।
सृष्टि का कण कण माता के तेज से ही उज्जवल
दिखाई देता है।मां कुष्मांडा बड़ी दयालूँ है और
अति शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती है।
एक बार सच्चे हृदय से पूकार कर तो देखियें ,
अपने बच्चों से मिलने माँ स्वयं चली आती है।
५)
नवरात्री का पाचवाँ दिन
मां स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत ममतामयी और परम सुखदायी है।
पांचवां स्वरूप है मां का और निराला
कहलाती है स्कंद माता
देवासुर संग्राम के सेनापति स्कंद के नाम पर पड़ा
मां का यह सुंदर अप्रतिम नाम प्यारा
जो कोई ध्याता स्कंद माता को
मोक्ष का द्वार उसके खुल जाता
परम सुखदायी माता बड़ी दयालु है
अपने भक्तों की मां सदा करती रखवाली है
समस्त इच्छाओं की पूर्ति तत्काल ही करती है!
माँ का वाहन शेर है और भोग में पसंद माता को केला है।कमल के पुष्प पे माँ विराजती है ।इस कारण पद्मावती कहलाती है।।
इस रूप में माता चार भुजा धारी है।दाहिनी ओर की ऊपर की भुजा में पंकज पुष्प धारण करती है।तो नीचे वाली भुजा वर मुद्रा में है।बाए ओर की ऊपर बाली भुजा में भी पंकज पुष्प है।वहीं नीचे वाली भुजा से स्कंदकुमार को अपनी गोद में ली हुई हैं।
६)
नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित है माता कात्यायनी अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहती है माता का प्रिय रंग लाल और भोग में मां को खास पसंद शहद और पान है।
माँ कत्यायनी अमोघ फल दीयिनी है।
मां कात्यायनी बुद्धि और शांति की प्रतीक हैं।
मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करने से अर्थ धर्म काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है और मन चाहा जीवन साथी भी प्राप्त होता हैं।
बृज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
बृज मंडल की गोपिया अपने प्रिये सखा कृष्ण को पति रूप में पाने लिये माँ कत्यायनी की ही पूजा करती थी।
माता का वाहन शेर है और हाथों में उनके कमल पुष्प शोभा पातें है।
७)
नवरात्री का सातवाँ दिन
माँ शंभुकरी अर्थात माता कालरात्री को समर्पित है।
माता को यह नाम उनके स्वरूप के कारण से दिया गया है।
इस अवतार में माता का रंग काजल के समान काला है।और माँ की चार भुजाएँ है।
ऊपर की दाहिनी भुजा से माँ अपने भक्तों को वर देती है।
और निचली दायी भुजा से अभय प्रदान करती है ।
जबकि बायीं भुजा से माता खडग और मुसल धारण करती है।
माँ कालरात्री के केश खुले हुए हैऔर गलें में विधुत्त की माला है।
क्रोध में माता की नासिका से अग्नि धधकती है।
माता का वाहन गदर्भ है ।माँ को गुड़ का भोग
और रंग नीला अति प्रिय है।
माँ के इस रूप को देख असुर भयभीत होते है ।मग़र माता अपने भक्तों पर अनुपम कृपा बरसाती है।
भक्तों के लिये सुलभ और ममतामयी होने के कारण ही माता शंभुकरी कहलाती है।
८)
नवरात्री का आठवाँ दिन समर्पित है ।माता महागौरी को ..!
माँ का रंग इस रूप में अत्यंत श्वेत है।इसलिये माता को
श्वेतांबरधरा भी कहतें है।माता को श्वेत रंग अति प्रिये है।
श्वेतांबरधरा माता का वाहन वृषभ है।और माता चार भुजाधारी है।
माता के दाहिने ओर की ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाली हाथ में त्रिशुल है।बायीं ओर की ऊपर वाले हाथ में डमरू और
नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है ।माता का स्वभाव शांत और सरल है।
भोग में माता को प्रिय नारियल है।
यह रूप माता का अत्यंत ममतामयी है।सच्चें हृदय से माँ को पूजने वाले भक्त की सारी मनोकामनायें माँ पूर्ण करती है।माँ बहुत दयालु
और कृपालु है ।आज अष्टमी के दिन ही माता रानी की खोईछा भराई
का भी रिवाज़ है।तो प्रेम से जयकारें लगाईयें सांचे दरबार की जय..माता सारे कष्टों से मुक्त कर हृदय से खुशिया प्रदान करती है।
९)
नवरात्री का नवाँ दिन माँ सिद्धिदात्री को समर्पित है।
देवताओं के तेज पुंज से मां सिद्धिदात्री का आविर्भाव हुआ।
अणीमा गरिमा महिमा लघिमा प्राप्ति प्राकाम्य ईशित्व वशित्व
ये सारी सिद्धियां मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों को प्रदान करती हैं।
मां का अति प्रिय रंग जामुनी है और भोग में श्रीफल के साथ हलवा पूरी ।
इस रूप में मां चार भुजा धारी है और कमल के आसन पर विराजमान हैं और अपने हाथों में भी कमल शंख चक्र और पज्ञ धारण किए हुए हैं ।
मां का वाहन सिंह है।
मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना केवल मानव ही नहीं ,
अपितु देव और भी दानव भी करते हैं ।
संपूर्ण ब्रह्मांड में मां की पूजा अर्चना की जाती हैं।
इस व्रत में ब्रम्हचर्य के पालन का खास महत्व है।
और कन्या पूजन का भी,भगवान शंकर को भी मां सिद्धिदात्री
की अनुकंपा से ही सारी सिद्धियों की प्राप्ति हुई है ।
तब भगवान शिव का आधा शरीर मां सिद्धिदात्री का हुआ
तभी तो भगवान शिव अर्धनारीश्वर कहलाए।
– किरण काजल
बेंगलुरु

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
