सिंगा पंथ के पहले मालवा माटी के अवधूत संत कालू जी ग्वाल – आत्‍माराम यादव पीव ,नर्मदापुरम

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सिंगा पंथ के पहले मालवा माटी के अवधूत संत कालू जी ग्वाल – आत्‍माराम यादव पीव

निमाड़ खण्ड में ग्राम पिपल्या में बसने के बाद सिंगा जी स्वामी की धर्मपत्नी जसोदाबाई के चार पुत्र हुये जिसमें कालू, भोलू, सदु और दीपू थे। दीपू की अल्पायु में मृत्यु हो गयी थी । सिंगा जी के ज्येष्ठ पुत्र कालू का जन्म कार्तिक सुदी 5 विक्रम संवत 1599 दिन सोमवार को हुआ था। संत कालू जी ग्वाल अपने पिता संत सिंगाजी महाराज के अनन्य भक्त थे। पिपलिया खुर्द निवासी प्रेमाजी की इकलौती पुत्री गुलाब बाई के साथ कालू जी महाराज का विवाह सम्पन्न होने पर सिंगाजी महाराज अपनी पुत्रवधू को हरसूद ले गये थे जहाँ कुछ दिन रहकर गुलाब बाई अपनी ससुराल से मायके लौट आयी। चूंकि प्रेमाजी गवली की एकमात्र कन्या होने से वे चाहते थे कि उनकी पूरी जायदाद, संपत्ति खेत आदि उनके जॅवाई कालू जी महाराज के देकर उन्हें घरजावाई बना ले लेकिन उनके पिता सिंगाजी महाराज के पास भी पुश्तैनी जायदाद की कमी नहीं होने से सिंगाजी ने यह बात ठुकरा दी जिससे दोनों परिवार में तनातनी होने से रिश्ता टूटने की स्थिति बन गयी। कालू जी महाराज की पत्नी गुलाब बाई नहीं चाहती थी कि यह रिश्ता टूटे तब उन्होंने अपने पति कालू जी महाराज को बुलाकर अनुनय की परिणामस्वरूप वे सम्बन्ध अटूट रखने का वादा कर हरसूद लौट गये।

कालू जी का चमत्कार-कालू जी महाराज अपनी पत्नी से किये गये वादे और उनके सम्बन्ध बनाये रखने के लिये रात को जब सब सो जाते थे अपने घर से निकलते और ससुराल की ओर रवाना हो जाते थे। कहते है कि बीच में नर्मदा तट आते वे माॅ नर्मदा से प्रार्थना करते और अपना कम्बल नर्मदा जी पर बिछा देते और उस पर बैठकर नर्मदा पार कर ससुराल पहुॅचते। कहा जाता है कि अपने पिता सिंगा जी के पशुओं को चराने के लिये कालूूजी उन्हें बचपन में जंगल ले जाते तब माॅ नर्मदा का ध्यान करते थे जिससे नर्मदा उनसे प्रसन्न थी और वे नर्मदा माॅ से बाते भी किया करते थे तभी ससुराल आते-जाते नर्मदा उनके कम्बल बिछाने पर उन्हें तट पर पहुॅचा देती थी। ससुराल पहुॅचकर कालूजी और गुलाबबाई का प्रेम गुप्त रूप से चलता रहा जिसकी भनक किसी को नहीं लग सकी और वे वापिस सुबह चार बजे लौट जाया करते थे। जब गुलाबबाई गर्भवती हुई तब अडौस-पड़ौस की महिलाओं के ताने एवं बनाम से उनका परिवार लोकलज्जा से मरने की स्थिति में आ गया तब माता ने अपनी पुत्री गुलाबबाई से पूछा तो उन्होंने अपने को बेदाग बताते हुये रात को पति के आने की बात बतायी।

अगले दिन सभी ने रात को कालूजी का इंतजार किया और बेटी गुलाबबाई से मिलते देखने के बाद उनसे चर्चा की और जो लोग गुलाबबाई पर उॅगली उठा रहे थे वे शर्मिन्दा हुये। सुबह कालूजी घर पर नहीं पहुॅचे तो सिंगाजी और उनकी पत्नी जसोदाबाई की चिंता बढ़ गयी कि बेटा कहा गया है। दोपहर को प्रेमाजी अपनी पुत्री और बेटे कालूजी को लेकर हरसूद आये तब सबकी चिंता हटी और प्रेमा जी ने सिंगा जी से निवेदन किया कि आप कालूजी को हमारे यहाॅ भेज दे, मेरी सम्पत्ति को देखने वाला कोई नहीं है आपका बेटा चुपचाप मिलने जाता था जिससे बेटी गर्भवती हो गयी है तब सिंगाजी ने कालूजी से पूछा और उनकी सहमति मिलने पर सिंगाजी न उन्हें ससुराल जाकर बसने की आज्ञा दे दी। संत कालूजी महाराज द्वारा अनेक दोहे, साखी और पदों की रचना की गयी जो उनके परम ज्ञानी एवं संत होने का प्रमाण है।
बहते जल कालू कहे , लीजे हाथ पसार।
बोर न हंसा आवहे या सरवर केरी पाल।।
कालू जी लोगों को आगाह करते है कि अगर आचमन करना है तो जो जल प्रवाहित हो रहा है, बह रहा है वह नित्य शुद्ध है उस जल से आचमन कीजिये क्योंकि जो जल प्रवाहित हो चुका है वह हंस रूपी शुद्ध जल दुबारा लौटकर वापस नहीं आवेगा। वे साधुआंें को सत्संग के लाभ से अवगत करा रहे है और बता रहे है क समय भी बहता जल जैसा है जो लौटकर नहीं आवेगा।

कालू बहेता पाणी नीरला, बाध्या गंधा होये।
साधु जन रमता भला, दाग न लागे कोये।।
कालू जी कहते है कि नदी का बहता पानी निर्मल और साफ होता है और तालाब एकत्रित किया जल गंदा होता है इसलिये साधुओं को बहते जल की तरह हमेशा भ्रमण करते रहना चाहिए ताकि ठहरे पानी की दूषितता जैसा दाग उनके चरित्र पर नहीं लग सके।
घर आये आदर नहीं, गये छपाये भुज।
कालु तीहा न जाइये, परमेसर की सुज।।
कालू दुनियादारी का आभास कराते हुये सीख दे रहे है कि अगर किसी के घर पहुँचने पर आपका आदर सत्कार नहीं करे और बाँहों में भरकर जो गले नहीं मिले उसके यहाॅ मत जाइये, यह आपके लिए ठीक नहीं है।
आवे भमरा बास लु बास लई उड़ जाये।
साद भमरा कालु कहे, ममता मत लपटाये।।
कालूजी के सभी को कुछ न कुछ सन्देश देते है और यहाॅ भी वे कह रहे है कि भॅवरा पुष्पांें की गंध के कारण खिंचा चला आता है और रसपान करके लौट जाता है। यही स्थिति स्वार्थी लोगों की है जो मित्र बनकर आते है और अपना स्वार्थ पूरा होेते ही वे रफूचक्कर हो जाते है।
हेत प्रीत की राबड़ी, मील कर पीजे बीर।
हेत बीना कालू कहे, कड़वी लागे शीर।।
कालूजी यहाॅ प्रेम का तात्पर्य बताते हुये कह रहे है कि दुनिया में सच्चा प्रेम बहुत कम देखने को मिलता है और जो दिखता है वह बनावटी ज्यादा होता है। अगर कोई प्रेम के साथ आपको राबड़ी खाने के लिये दे रहा ह तो उसे सब हिलमिल कर ग्रहण करो किन्तु बिना प्रेम के परौसी गयी खीर भी कड़वी होगी।
कहा सुणी माने नहीं, बैरागी की जात।
काट पड़े कालू कहे, फुके आधी रात।।
मन के द्वन्द से आज तक कोई नहीं जीत सका है इसलिये कालू मन में रागात्मक वृत्ति को छिपाकर जीने वाले बेैरागियों को बताना चाहते है लेकिन वे उनकी बात नहीं मानते है। जबकि यही रागात्मक वृत्तियाॅ उन लोगों को आधी रात्रि के बाद तीव्र होने पर अग्नि की तरह जलाने लगती है।

बड़ा हुआ तो काहा भया, जो मत उपजी नाये।
सीस सींध कालु कहे, डारया कुवा माये।।
कालू बताते है कि अगर कोई बड़ा आदमी बुद्धिहीन निकले तो उसका बड़प्पन किस काम का हेैै ऐसे व्यक्ति को सींग वाला पशु मानकर कुये में डकेल देना चाहिये।।
द्रसन परसन देहे लगी,उठ कर मीलीये आये।
तन छुटे कालु कहे, काहा पड़ेंगे जाय।
मनुष्य को चेताते हुये कालू संत कहते है कि अगर तुम्हें मनुष्य का तन मिला है तो इस तन का उपयोग कर लो और जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाओ। इस मनुष्य देह का की सार्थकता संतों के दर्शन करन तथा उनके चरण स्पर्श कर उनसे आर्शीवाद प्राप्त करने में जीवन की सफलता है अगर यह देह नहीं रहेगी तो अगल जन्म किस देह में मिलेगा यह समझना जरूरी है।
कालू काल जब मीटे, जोब सीक ली गुरू होये।
जनम जनम का मोहेरचा, पल मा नाके तोड़।।
कालू कहते है जब मृत्यु आती है तब व्यक्ति को सजग होना चाहिये अगर उसने गुरू की शरण प्राप्त कर ली है तो गुरू के उपदेशानुसार आचरण करने पर मृत्यु का भय समाप्त हो जायेगा और जीव के जन्म जन्मातर के सारे पाप नष्ट हो जायेंगे और जीव को आवागमन से मुक्ति मिल जायेगी।
नमन खमण बहुदीनता सब सु आदर भाव ।
कहे कालु सोई बड़ा जामे बोत समाव।।

कालू संत सांसारिक लोगों को समझाते हुये कहते है कि इस संसार में वह व्यक्ति बड़ा है जिसमें विनम्रता है जो क्षमा करने वाला क्षमाशील है और सभी के प्रति चाहे वह पात्र हो या कुपात्र, आदर करना जानता है वह व्यक्ति श्रेष्ठ है उसमें सभी भावनायंें समाहित है।
कहा सुणी माने नहीं मन मा राजा भोज।
कालू कहे नेहे के नीहारीये, तु ही अकल कु षोज।।
जब मन रूपी राजा भोज ऐसा हठी बन जाता हे जो उचित सलाह को नहीं मानता तब कालूजी कहते है कि तब मन को मनाने के लिये बुद्धि को खोजिये और सभी को स्नेह प्रेम से निहारकर मनजीत बन जाईये।
संत कालूजी ग्वाल के द्वारा मन पर विजय प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को पहले अपने अन्दर के विकारों को जीतना होगा और निर्विचार होने पर आत्मा के द्वार पर दस्तक देकर सभी तरह की सिद्धियों के भवन मंें प्रवेश मिल जायेगा जहाॅ न तो मन का भटकाव है, न मन की चंचलता-विवशता है, वहाॅ सिर्फ परमात्मा है। जो सतनाम को साधकर चलता रहेगा वह एक दिन अवश्य ही परमात्मा में लीन हो जायेगा।
कालू जी महाराज बचपन से ही अपने पिता सिंगा जी को संतत्व के मार्ग पर जाते देख पिता से दीक्षा प्राप्त कर वे सिंगा पथ के पहले संत हुये जिन्होंने पिता के मार्ग का अनुसरण कर कम आयु में ही महेश्वर पश्चिम निमाड़ के ग्राम पिपल्या खुर्द में जीवित समाधि प्राप्त कर ली थी, उनका समाधि स्थल बडवाहमार्ग पर पूर्व दशा में महेश्वर से तेईस किलोमीटर दूर है। संत कालूजी ग्वाल की ससुराल था पिपल्या खुर्द गाॅव जहाॅ उन्होंन समाधि ली जहाॅ आज भी प्रतिवर्ष कालू महाराज के नाम से पशु मेला लगता है ।
संत कालू जी का जीवित समाधिस्थल-संत कालूजी ग्वाल ने अपने पिता सिंगाजी के आदेश को नहीं टाला और ससुराल आकर रहने लगे। कहा जाता है कि जब कालू जी अपनी ससुराल जा रहे थे तब उनके पिता सिंगाजी महाराज ने उनसे वचन लिया था कि तुम पिपल्या जा तो रहे है पर वहां अपनी साधना पूरी करके लौटना। बस इसी बात को ध्यान में रखते हुये उनका मन नहीं रमता था इसलिए उन्होंने जीवित समाधि लेने का मन बना लिया। कुछ माह ऐसे ही बीत गये फिर पिताजी से ली गयी यो साधना को पूरा करने के लिए उनका मन बेचैन रहने लगा इसलिये वे 9 माह की कठिन समाधि लेकर कठिन तपस्या करना चाहते थे जिससे वे पूरी तरह प्रकाशमान हो जाये। उन्होंने आसपास के लोगों के सामने यह घोषणा कर दी कि जमीन के भीतर दस गुणा दस फिट की मेरी समाधि खोद दी जाये। जब समाधि में जाए तो ऊपर से पटिये रख मिट्टी से ढक दिये जाये और उसे नौ माह बाद खोला जाये, मैं जीवित लौटूंगा अगर बीच में खोल दिया तो अनर्थ हो जायेेगा। कालू महाराज ने अपने पिता से ली गयी साधना पर विश्वास करते हुये खुद ही कहा था कि –

कालू उद्यम कर बैठे बणी नी बीर।
तन सरवर मन माछल शेष कालु कीर।
कालूजी कहते है कि यह शरीर रूपी सरोवर में मन रूपी मछली पकड़ना है तो कीर अर्थात मछुआरे की तरह जाल बिछाकर उन्हें पकड़ने का परिश्रम करना होगा, एक स्थान पर बैठे रहने से तू वीर नहीं बन सकता है। कालू उठ कुछ प्रयत्न करो। सबसे विदा लेकर कालूजी ने नौ महिने की समाधि ले ली।
सात माह बीतने पर समाधि के पास एक श्वते कपड़ों में घुड़सवार दिखता है जो गायब हो जाता है जिसे लोगों ने कई बार देखा। तब धनगर समाज के लोगों ने सातवे माॅह में समाधि खोल दी जिससे एक शिशु रोता दिखा और उसने कहा कि मैं अपने बेटे के रूप में फिर आ रहा हॅू लेकिन धनगर समाज के लोगों ने समाधि भंग की जिससे मेरी तपस्या अधूरी रह गयी, मैं धनगर समाज को श्राप देता हॅू कि पीपल्या में किसी भी धनगर के वंशवृद्धि नहीं होगी, वे यहाॅ सुखी नहीं रहेंगे, तभी से उस गाॅव से धनगर समाज के लोग पीपल्या छोड़कर चले गये। ग्वाल समाज के लोगों ने समाधि स्थापित कर दी तभी से उनकी समाधि पर एक अहर्निश शुद्ध घी का दीपक प्रज्वल्वित है जिसे नंदा दीपक कहा जाता है। कालू महाराज के समाधि में जाने के बाद उनके एक पुत्र दलु दास का जन्म होता है जिसकी तिथि प्रमाणिक नहीं है क्योंकि कोई संवत 1950 बताता है तो कोई संवत 1967 बताता है इसलिये यह शोध का विषय है।

आत्‍माराम यादव पीव वरिष्‍ठ पत्रकार,
श्रीजगन्‍नाथधाम काली मंदिर के पीछे, ग्‍वालटोली
नर्मदापुरम मध्‍यप्रदेश मोबाइल 9993376616

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