

अतीत
जिंदगी की किताब से
न फाड़ देना गुरूर में,
अतीत के बेशकीमती,
पन्ने किसी सुरूर में !
कभी आईना बनकर
अक्स वे दिखाएँगे,
कभी सबक-ए-जिंदगी
वक्त पे सिखलाएँगे।
तन्हाई में , मायूसी में
लब सहसा मुस्कराएंगे,
खुशियों वाले खोल पिटारे
झूम झूम जब जाएँगे।
आएगी विपदा जब भारी
होगी काया जब हारी-हारी,
मानस में पन्ने अतीत के
आकर अंतर्मन सहलाएँगे,
घोर निराशा के तम देखना
शनै शनै छंट जाएँगे।
राह निकल आएगी सामने,
दिन भटकन के टल जाएँगे।
–रश्मि सिंह
रांँची, झारखंड

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
