काव्य : अतीत – रश्मि सिंह रांँची, झारखंड

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अतीत

जिंदगी की किताब से
न फाड़ देना गुरूर में,
अतीत के बेशकीमती,
पन्ने किसी सुरूर में !
कभी आईना बनकर
अक्स वे दिखाएँगे,
कभी सबक-ए-जिंदगी
वक्त पे सिखलाएँगे।
तन्हाई में , मायूसी में
लब सहसा मुस्कराएंगे,
खुशियों वाले खोल पिटारे
झूम झूम जब जाएँगे।
आएगी विपदा जब भारी
होगी काया जब हारी-हारी,
मानस में पन्ने अतीत के
आकर अंतर्मन सहलाएँगे,
घोर निराशा के तम देखना
शनै शनै छंट जाएँगे।
राह निकल आएगी सामने,
दिन भटकन के टल जाएँगे।

रश्मि सिंह
रांँची, झारखंड

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