लघुकथा : नसीहत – अमृता प्रसाद जगदलपुर

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लघुकथा

नसीहत

दरवाजे पर भिखारी आवाज लगाये जा रहा था “बाबा, कुछ  खाने को दे दो,दो दिनों से कुछ नहीं खाया,वह बड़ी देर से चिल्लाए जा रहा था।
आखिरकार माथुर जी को बाहर आना पड़ा। माथुर जी के पीछे  उनका बेरोजगार बेटा भी दरवाजे पर खड़ा हो गया। भिखारी को देखकर माथुर जी की नसीहत शुरु हो गयी “शरीर से तो हट्टे-कट्टे हो कुछ काम क्यों नहीं करते भीख मांगते शर्म नहीं आती? भिखारी आगे बढ़ने लगा तभी उसकी नज़र माथुर जी के बेटे पर पड़ी।
        उसने भी चुप रहना उचित नहीं समझा माथुर जी से कह दिया साब,, यह नसीहत आप
जो आपके पीछे खडे हैं उन्हें भी दे सकते हैं,, उन्हें भी कोई काम नहीं है शायद तभी गली के दुकान पर खड़े रहकर आने जाने वाली महिलाओं और लड़कियों पर फिकरे कसते रहते हैं मैं तो भीख भी मांग लेता हूं।
                    माथुर जी ने झट दरवाजा बंद कर दिया।

अमृता प्रसाद
जगदलपुर

जिला बस्तर
छत्तीसगढ़

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