काव्य : स्मृति में तुम ही आते हो – डॉ ब्रजभूषण मिश्र भोपाल

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स्मृति में तुम ही आते हो

स्मृति में ,तुम ही आते हो
आते हो ,रह जाते हो
नजर उठा के, जब देखूं
तुम नजर नहीं, क्यों आते हो

तुम ,मन में,गहरे बैठे हो
कुछ रूठे हो,कुछ ऐंठे हो
ऐसे भी क्या,कोई होता है
क्यों रूठ रूठ,तुम जाते हो

मैंने भी, है अब ठान लिया
तुमको ही, अपना मान लिया
सपने सा ,बन कर, रहा करो
ब्रज के ,मन को तुम भाते हो

डॉ ब्रजभूषण मिश्र
भोपाल

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