काव्य : भ्रम – आरती श्रीवास्तव विपुला जमशेदपुर

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भ्रम

भ्रम नहीं है यह मेरा,
है यह एक सुखद एहसास।
सभी करते हैं मुझसे प्यार,
सभी को है मुझ पर एतबार।
भ्रम नहीं ,जीती हूँ मैं,
सुनहरी संसार के आस पास।
नाते रिश्ते सगे संबंधी,
सब है मेरे साथ साथ।
माना कि यह भ्रम है दुनिया,
फिर भी जिजीविषा है आज।
इन्द्रजाल है दुनिया सारी,
फिर भी जीने की तैयारी।
सोच समझ कर पाला है ,
मैंने यह भ्रम जो सारा,
क्योंकि मुस्कुरा कर जीना
भी तो है जीवन जीने की कला।

आरती श्रीवास्तव विपुला
जमशेदपुर झारखंड

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