

मैं परिचारिका तेरे जग की
सरल सुरम्य सौरभमय,
सृष्टि सृजित ये उद्यान।
मधुमय हो संसार तुम्हारा,
बनी धरा अमृत खाद्यान्न।
कण – कण हूँ न्योछावर,
मैं परिचारिका तेरे जग की।।
प्रभात बेला घर – घर में मैं,
स्वच्छ मंगल करती चलूँ।
नर – नारी के आँगन पुष्पित,
नैतिकता बनकर के मिलूँ।
रिद्धि – सिद्धी की सखी हूँ,
मैं परिचारिका तेरे जग की।।
नवाचार वैश्विक पटल पर,
लावण्य बनकर बरस गई।
हिम शिखर की सुर्य मुकुट,
बनकर प्रभा भू पर सरस गई।
दुःख में भी मैं हरष रही,
मैं परिचारिका तेरे जग की।।
ज्ञान दीप प्रज्ज्वलित कर,
मन का तिमिरमय क्षण हरूँ।
बाल – ग्वाल सब हँसते रहे,
मैं ऐसी सृष्टि का निर्माण करूँ।
सकल ब्रह्माण्ड सृष्टि कृतिकार,
मैं परिचारिका तेरे जग की।।
विश्व चराचर फले – फूले ,
आनंद सदा आह्लादित रहे।
सरस्वती नव कोपल बन उगे,
धरा गगन प्रेम की बात कहे।
रमणीक भी मैं हूँ पर बनी,
मैं परिचारिका तेरे जग की।।
भारत को विश्व गुरु बनाने,
मैंने तेजोमय लाल दिए ।
शीश मुकुट का दमखम,
सुसज्जित सुंदर भाल दिए।
सच मानो या ना जानो,
मैं परिचारिका तेरे जग की।।
हाल या बदहाल रहूँ पर,
तू चमके उत्तम आकाश में।
मैं तमिस्रा घोर हरूँ,
तू रहे सदा स्वर्णिम प्रकाश में।
तेरे लिए ही बनी हूँ,
मैं परिचारिका तेरे जग की।।
–प्रियंका कुमारी, मानगो,
जमशेदपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
