आत्म निर्भर पारंपरिक प्राकृतिक सांस्कृतिक मूल्यों के संवाहक हमारे आदिवासी – विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल

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आत्म निर्भर पारंपरिक प्राकृतिक सांस्कृतिक मूल्यों के संवाहक हमारे आदिवासी

अधिकांश आदिवासी प्रकृति के साथ न्यूनतम आवश्यकताओ में जीवनयापन करते हैं। वे सामन्यत: समूहों में रहते हैं और उनकी संस्कृति अनेक दृष्टियों से आत्मनिर्भर होती है। आदिवासी संस्कृतियाँ परंपरा केंद्रित होती हैं । भारत में हिंदू धर्म की संस्कृति इनमें पाई जाती है । विश्व में उत्तर और दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, एशिया तथा अनेक द्वीपों और द्वीप समूहों में आज भी आदिवासी संस्कृतियों के अनेक रूप पाये जाते हैं। संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार, भारत में आदिवासियों को परिभाषित किया गया है। और उन्हें विशेषाधिकार दिये गये हैं , जिससे वे भी देश की मूल धारा के साथ बराबरी से विकास कर सकें । आदिवासी जनजातियाँ देश भर में, मुख्यतया वनों और पहाड़ी इलाकों में फैली हुई हैं। पिछली जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या का लगभग 8.6% अर्थात देश में कोई बारह करोड़ जनसंख्या आदिवासी हैं ।
आदिवासी शब्द का प्रयोग सबसे पहले अमृतलाल विठ्ठलदास ठक्कर ने किया था, जिन्हें ठक्कर बापा के नाम से जाना जाता है। मध्य प्रदेश में अनेक जनजातीय आबादी रहती है । भील, गोंड, कोल, बैगा, भारिया, सहरिया, आदि, मध्य प्रदेश के मुख्य आदिवासी समूह हैं । इनकी बोली स्थानीयता से प्रभावित है । सामान्यतः स्वयं बनाई हुई झोपड़ियों के समूह में ये जन जातियां जंगलो के बीच में रहती है।
अलग अलग जन जातियों के त्यौहार जैसे गल, भगोरिया, नबाई, चलवानी, जात्रा, आदि मनाये जाते हैं जिनमें मांस , स्वयं बनाई गई महुये की मदिरा , ताड़ी का सेवन स्त्री पुरुष करते हैं । सामूहिक नृत्य किया जाता है । विवाह की रीतियां भी रोचक हैं जिनमें अपहरण, भाई-भाई, नटरा, घर जमाई, दुल्हन की कीमत (देपा सिस्टम), आदि प्रमुख हैं । परंपरागत रूप से पुरुष सिर पर पगड़ी , अंगरखा , बंडी या कुर्ता, धोती ,गमछा पहनते हैं, और महिलाएं साड़ी, चोली और घाघरा पहनती हैं। पिथौरा चित्रकला भील जनजाति की विश्व प्रसिद्ध लोक चित्रकला है। ये जन जातियां गीत संगीत , ढ़ोल नगाड़ो के शौकीन होते हैं । भील बांसुरी बजाने में माहिर होते हैं। होली दिवाली मेले मड़ई हाट बाजार में उत्सवी माहौल रहता है ।
आदिवासियों में से समय समय पर अनेक क्रांतिकारियों का योगदान समाज में रहा है । बिरसा मुंडा , मुंडा विद्रोह/उलगुलान का महानायक , जयपाल सिंह मुण्डा – महान राजनीतिज्ञ , सुबल सिंह – चुआड़ विद्रोह के नायक और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम शहीद थे , टंट्या भील – भारत के रोबिन्हुड कहे जाते थे । रानी लक्ष्मीबाई की सेनापति झलकारी बाई , सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू – संताल विद्रोह के नायक रहे हैं । तिलका माँझी – पहाड़िया विद्रोह के नायक , गंगा नारायण सिंह – भूमिज विद्रोह और चुआड़ विद्रोह के महानायक , जगन्‍नाथ सिंह – चुआड़ विद्रोह के नायक , दुर्जन सिंह – चुआड़ विद्रोह के नायक , रघुनाथ सिंह – चुआड़ विद्रोह के महानायक थे । बुधू भगत -भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते हैं। इनकी लड़ाई अंग्रेज़ों, ज़मींदारों तथा साहूकारों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध थी । तेलंगा खड़िया – आदिवासी समाज के स्वतंत्रता सेनानी थे ।
आजादी के बाद से उल्लेखनीय सामाजिक कार्यों के लिये आदिवासीयों में से सर्व श्री करिया मुंडा को पद्म भूषण ,मंगरू उईके , रामदयाल मुण्डा ,गंभीर सिंह मुड़ा , तुलसी मुंडा को पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है .
भोपाल में जन जातीय संग्रहालय बनाया गया है , जहाँ विभिन्न दीर्घाओ में आदिवासी संस्कृति को दर्शाया गया है ।
कांग्रेस देश में सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी है, इससे आदिवासियों का गहरा पुराना नाता है। ।मंगरू उईके मण्डला के प्रमुख आदिवासी नेता रहे हैं जो अनेक बार यहां से कांग्रेस के सांसद थे । उन्हे पदमश्री से समांनित भी किया गया था। मोहन लाल झिकराम मंडला का नेतृत्व कर चुके लोकप्रिय नेता थे । मंडला डिंडोरी के आदिवासी करमा नर्तक दल दिल्ली के गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होते रहे हैं। ये नृत्य दल फ्रांस आदि देशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं।

विवेक रंजन श्रीवास्तव
भोपाल

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