

‘आईना बोलता है’ में हैं संवेदनाओं से ओत-प्रोत कविताएँ
आईना बोलता है कवि हलीम आईना का तीसरा कविता संग्रह हैं। हास्य-व्यंग्य कविता में कवि हलीम आईना की सक्रियता और प्रभाव व्यापक हैं। इनकी रचनाएँ निरंतर देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उन्हें अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। इस पुस्तक की भूमिका वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने लिखी है। उन्होंने लिखा है हलीम आईना की हास्य-व्यंग्य दृष्टि कमाल की है। उनकी कविताओं की सहजता, सरलता और बोधगम्यता अभिभूत करती हैं। प्रतीकों में लिखी गई उनकी व्यंग्य कविताएँ लक्ष्य को भेदने में सफल होती हैं। हिन्दी में व्यंग्य कविताओं का अभाव है, ऐसे समय में आईना की व्यंग्य कविताएँ उस कमी को पूरा करती हैं। उनकी निरंतर सक्रियता ने हिन्दी व्यंग्य कविता को समृद्ध किया है। यह मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत कविताओं का एक सशक्त दस्तावेज़ है। इस संग्रह में उनकी सामाजिक सरोकार की ह्रदय-स्पर्शी कविताएँ संग्रहित हैं। इस संग्रह की हर रचना पाठकों और साहित्यकारों को प्रभावित करती है। इस संकलन में 51 छोटी-बड़ी कविताएँ संकलित हैं।
समाज में फैली कुरीतियों और पारंपरिक मूल्यों के ह्रास पर सचेत करती हुई हलीम आईना की कविताओं का कैनवास अति विशाल है। कवि अपनी कविताओं में विभिन्न विषय लेकर मानव प्रेम, देश प्रेम, सद्भाव और सौहार्द की बाते करते हैं। बड़ा कौन…? कविता में कवि बड़ी निर्भीकता से देश के भगोड़ों को बेनकाब करते हैं। गन्दी राजनीति की वजह से प्रजातंत्र की विसंगतियाँ “सुपर तकनीक…?” कविता में उजागर होती है – सुनिए माई-बाप! / बाइ द वे यदि आप! / टनाटन / राजनीति करना / चाहते हैं साहिब! / तो जातिवाद का / काला जादू सीखिए! / झूठे आश्वासनों की / नौटंकी कीजिए! / भाषणबाज़ी का / भांगड़ा सीखिए! चोरी और सीनाजोरी…! रचना एक प्रकार से समाज का आईना है। कविता आसान शब्दों में गहरी बात कह जाती है। इस कविता में कवि कहते है – आज का आदमी / कितना ज़हरीला / साँप है? / कम्बख्त! / गिरगिट का बाप है! / चूहे के बिल में घुस कर / पहले चूहे को खाता है, / और फिर / चूहे के बिल पर / अपना / मालिकाना हक़ / जताता है…? इस कविता संग्रह की कविताएँ बड़ा कौन…?, वे जो ठहरे महाकवि…!, सुपर तकनीक…?, टैगासुर कहीं के…! गुदगुदाते हुए तिलमिलाने को मजबूर करती है। कवि सामाजिक घटनाओं और परिस्थितियों पर पैनी नज़र रखते हैं। कवि की रचनाएँ शोषण का विरोध करती हैं और आम आदमी के पक्ष में खड़ी दिखती हैं। बेटी पुण्य है, बेटा उपहार, क्या जवाब देंगे…?, पुण्य की कमाई, जी हाँ, मुझे कवि होने पर गर्व है…!, बूँद-बूँद ही से घड़ा भरता है…?, सच्ची प्रार्थना, नींव का पत्थर और कंगूरा…?, बदलेगा बुरा समय भी…?, कोरोनी सबक…? जैसी कविताओं के माध्यम से वे समाज में नयी चेतना जागृत करते हैं और समाज को दिशा निर्देश देते हैं।
संवेदनशीलता लेखनकर्म की प्राथमिक शर्त है। हलीम आईना स्वभावतः अत्यन्त संवेदनशील हैं। आईना बोलता है एक पठनीय, विचारणीय एवं संवेदनशील कविता संग्रह है। कविताओं की सरल-तरल भाषा, समाज और समाज की व्यवस्था को देखने की उनकी एक अलग दृष्टि, दुनिया को देखने का उनका अपना अनुभव उनकी रचनाओं को एक अलग ही कलेवर प्रदान करता है। भाषा को चित्रमयी कहना अनुचित ना होगा। हलीम आईना की कविताओं में हास्य के साथ गहरे व्यंग्य की अनुभूति होती है। इस संग्रह की रचनाएँ पाठकों को मानवीय संवेदनाओं के विविध रंगों से रूबरू करवाती हैं। संप्रेषणीयता के स्तर पर हलीम आईना की कविताएँ खरी उतरी हैं। संग्रह की रचनाएँ ह्रदय में गहरे चिन्ह छोड़ जाती हैं। हलीम आईना के कविता संग्रह आईना बोलता है का साहित्य जगत में स्वागत है, इस शुभकामना के साथ कि उनकी यह यात्रा जारी रहेगी।
पुस्तक : आईना बोलता है (कविता संग्रह)
लेखक : हलीम आईना
प्रकाशक : किताबगंज प्रकाशन, आईसीएस (रेमण्ड शोरूम), राधाकृष्ण मार्केट, एसबीआई बैंक के पास, गंगापुर सिटी – 322201
आईएसबीएन नंबर : 978-93-89917-49-9
मूल्य : 150 रूपए
समीक्षक
दीपक गिरकर
28 – सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर ।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
