काव्य : कुछ कलियां खिलीं – आर्यावर्ती सरोज “आर्या” लखनऊ

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कुछ कलियां खिलीं

मुझको खुशियां जो मिलीं।
वो सारी किस्तों में मिलीं।।

अश्कों के साए में थी।
मुस्कान छुपकर के पली।।

सुबह आई ज़िन्दगी में,
सांझ होकर के ढली।

रात ने सिसकी भरी, फिर!
अलविदा कह कर चली।

शेष खुशियां जो भी थीं,
अवशेष बन कर वे चलीं।

लम्बी विरानी के बाद,
महज़ कुछ कलियां खिलीं।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ

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