काव्य : आईना – सरोज लता सोनी भोपाल

166

आईना

सरोज लता सोनी

हर ज़िंदगी का रूप,
दिखाता है आईना |
इंसान की पहचान,
कराता है आईना||

हों लाख ज़मा पर्तें ,
गहलतों की गर्दिशें |
हर सीरतों को साफ,
दिखाता है आईना ||

जो गुम है ज़िंदगी की,
खाईयों में ख्वाहिशें |
देता सदा उभार वो,
यादों का आईना ||

जो ज़िंदगी में धूप,
कहीं छाँव का एहसास|
उस नियति का दीदार,
कराता है आईना ||

क्यूँ ढूँढता है फिर रहा,
तू उसको दर-बदर |
दीदार होगा साफ कर ,
तू दिल का आईना ||

सरोज लता सोनी
भोपाल

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here