

ग़ज़ल
वक्त/समय/काल
वक़्त ग़ुज़रा फिर कभी आता नहीं।
वक़्त हम जाया करें भाता नहीं।
इश्क में ठोकर मिली ज़ायज नहीं,
इल्म वाला ये कभी गाता नहीं।-
दोस्ती में ज़िन्दगी क़ुर्वान हो,
दोस्त ग़र है छोड़कर जाता नहीं।
इश्क की बुनियाद ही एतवार है,
पाक हो ग़र रूह छल आता नहीं।
आशिक़ों की है अलग दुनिया ये सच,
सच निहायत कोई झुंठलाता नहीं।-05
इश्क की राहें बवंडर से भरी,
सच मगर ये कोई बतलाता नहीं।
इश्क़ में हम झट मिलेंगे रब कहे,
ये यकीं मुझको उन्हें आता नहीं।/07
जोड़ियां ग़र आसमां पर “ध्रुव” बनीं,
कौन कहता रब है मिलवाता नहीं।
– प्रदीप ध्रुवभोपाली
भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
