

वीरांगना महारानी दुर्गावती जी की जयंती मनाई
इटारसी।
जन अभियांन परिषद के केसला विकासखंड मे पथरोटा, पीपल ढाना और जमानी मे महान वीरांगना महारानी दुर्गावती जी की जयंती मनाई गई| उपस्थित सभी लोगों को दुर्गावती जी की गाथा बताई गयी|वीरांगना महारानी दुर्गावती जयन्ती के बारे मे प्रकाश डाला गया कि
आज से 499 वर्ष पूर्व कालिंजर राज्य में नवदुर्गा का उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा था । राजा कीर्ति सिंह चन्देल के यहाँ दुर्गाष्टमी का दिन दुगुनी खुशियाँ लेकर आया । रानी ने कन्या रत्न को जन्म दिया । दुर्गाष्टमी का दिन होने से कन्या का नाम दुर्गावती रखा गया ।
नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण दुर्गावती की प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपतशाह से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया । उन्होंने अत्यन्त न्यायपूर्वक शासन चलाया । अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाई। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी सहायिका के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।
दुर्गावती ने 16 वर्ष तक जिस कुशलता से राज संभाला, उसकी प्रशस्ति इतिहासकारों ने की। अबुल फ़ज़ल ने लिखा है, दुर्गावती के शासनकाल में गोंडवाना इतना सुव्यवस्थित और समृद्ध था कि प्रजा लगान की अदायगी स्वर्णमुद्राओं और हाथियों से करती थीं। मंडला में दुर्गावती के हाथीखाने में उन दिनों 1400 हाथी थे।
पड़ोसी राज्य मालवांचल भी सम्पन्न क्षेत्र माना जाता रहा है, पर वहाँ का सूबेदार स्त्री लोलुप बाजबहादुर खान जो कि सिर्फ रूपमती से आंख लड़ाने के कारण प्रसिद्ध हुआ है । वह दुर्गावती की सम्पदा पर आंखें गड़ा बैठा था । उसने गोंडवाना पर आक्रमण किया । पहले ही युद्ध में दुर्गावती ने उसके छक्के छुड़ा दिए और उसका चाचा फतेह खां युद्ध में मारा गया, पर इस पर भी बाजबहादुर की छाती ठंडी नहीं हुई और जब दुबारा उसने रानी दुर्गावती पर आक्रमण किया, तो रानी ने कटंगी-घाटी के युद्ध में उसकी सेना को ऐसा रौंदा कि बाजबहादुर की पूरी सेना का सफाया हो गया। फलत: दुर्गावती सम्राज्ञी के रूप में स्थापित हुईं।
उधर मुगल शासक अकबर भी गोंडवाना राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ़ ख़ाँ के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ़ ख़ाँ पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास ‘नरई नाले’ के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुग़ल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून, 1564 को मुग़ल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। रानी ने अंत समय निकट जानकर मन्त्री आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। महारानी दुर्गावती ने #अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।
सुभद्राकुमारी चौहान ने रानी दुर्गावती पर लिखी वीर रस की कविता में एक पद में लिखा है
थर-थर दुश्मन कांपे,
पग-पग भागे अत्याचार,
नरमुण्डों की झडी लगाई,
लाशें बिछाई कई हजार,
जब विपदा घिर आई चहुंओर,
सीने मे खंजर लिया उतार।
ऐसी वीरांगना रानी दुर्गावती की आज जयन्ती पर सभी ने उन्हें शत-शत नमन कर उनकी तस्वीर पर माल्याअर्पण कर दीप जलाया| मौके पर ब्लॉक समनव्यक विवेक मालवीय, राकेश भट्ट, त्रिलोक मनवारे, वैंकेट चिमानिया, पूजा चौरे, गौरव यादव सहित गाँव रहवासी उपस्थित रहे|

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
