

परमात्मा से प्रेम करना सिखाती है श्री मद भागवत की पावन कथा – पंडित नरेंद्र तिवारी
नेपाल काठमांडू के पशुपति नाथ धाम में हो रहा भागवत सतसंग
शिव भारद्वाज
इटारसी ।
श्री नारद जी द्वारा व्यास जी के कानों में जो चतुर्शलोकी ज्ञान गंगा संवाहित की गई थी,उसी से व्यास जी ने 18000 श्लोकों की श्री मद भागवत कथा की रचना की थी। उक्त उदगार नेपाल काठमांडू के पशुपति नाथ धाम में होटल शिवम् प्लाजा पिंगलास्थन सभागार में इटारसी के भागवताचार्य पंडित नरेन्द्र तिवारी ने श्रीमद भागवत ज्ञान सत्संग में वयक्त किए। इसके पूर्व कलश यात्रा निकाली, कलश यात्रा पशुपतिनाथ मंदिर से शुरु होकर कथा स्थल पर पहुंची। कथा के प्रथम दिन पंडित नरेंद्र तिवारी ने भागवत कथा के महत्व को समझाया। भागवताचार्य पंडित नरेन्द्र तिवारी ने श्री मद भागवत कथा के प्रथम श्रोता राजा परीक्षित के जन्म की द्वापर युग की अलौकिक कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि वास्तव में तो भागवत कथा शोनकादिक 88 हजार ऋषियों के द्वारा श्री शुकदेव जी से पूछे गए 6 प्रश्नों की उत्तर स्वरूप ही है। कथा के द्वितीय दिवस पंडित नरेंद्र तिवारी ने अश्वत्थामा द्वारा की गई पांडव पुत्रों की हत्या के बाद भी द्रोपदी द्वारा पांडवों को अश्वत्थामा को मृत्यु दण्ड नहीं देने, शर शैया पर लेटे भीष्म व श्री कृष्ण के मध्य हुए संवाद आदि कुछ कथा प्रसंगों का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया। भीष्म द्वारा की गई श्री कृष्ण की पावन स्तुति को भजनांजली के रूप में बहुत सजीवता से रेखांकित किया।पण्डित नरेंद्र तिवारी ने राजा परीक्षित को दिए गए श्राप की कथा का भी विस्तार पूर्वक वर्णन किया ।इस ज्ञान यज्ञ के मुख्य यजमान यजमान प्रोफेसर डा.विनोद सीरिया एवं सहयजवान एन पी चिमनियां ने व्यास पीठ की पूजा की ।
कथा का तृतीय दिवस
कथा के तृतीय दिवस पंडित नरेंद्र तिवारी ने कहा कि सच्चे भक्त को ही भगवान के सानिध्य का सौभाग्य प्राप्त होता है। आज अपने शहर से हजारों किलोमीटर दूर नेपाल पशुपतिनाथ धाम में भक्तों को भगवान ने ही यहां पर बुलाया है।कथा को विस्तार देते हुए पण्डित नरेंद्र तिवारी ने कहा कि सतयुग में इंसान की उम्र 1 लाख वर्ष तक की होती थी। त्रेता युग में यह घटकर 10 हजार वर्ष हो गई। द्वापर युग में यह पुनः घटकर 1 हजार वर्ष हो गई तो कलयुग में यह पुनः 10 गुना घटकर मात्र 100 वर्ष रह गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मानव सभ्यता व भारतीय संस्कृति का किस तरह उत्तरोत्तर पराभव हुआ है। उन्होंने कहा कि वास्तव में विदुर जी धर्मराज ही थे जो एक ऋषि मांडव के श्राप के कारण मृत्यु लोक में आए थे। सच तो यह है कि श्री कृष्ण व द्रोपदी चाहते थे कि महाभारत का युद्ध हो। क्योंकि वे जानते थे कि अधर्म से धर्म की रक्षा के लिए यही एकमात्र विकल्प था। युद्ध के अंत में भी सिर्फ वही जीवित बचे जिनमें देवत्व था। श्री कृष्ण तो साक्षात परमात्मा ही थे। द्रोपदी भी ध्रुपद के हवन कुंड से जन्मी थी। पांचों पांडव भी किसी न किसी देवता के अंश स्वरूप ही थे तो परीक्षित को तो स्वयं श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में ही ब्रह्मास्त्र से बचाया था। ताकि धर्म का राज्य द्वापर में आगे बढ़ सके व वे कलयुग के आगमन की पृष्ठभूमि बना सकें। पंडित तिवारी ने कहा कि भगवान सिर्फ भक्त का भाव ही देखते हैं और कुछ नहीं। विदुर के घर भोजन करने के लिए वे महारानी गांधारी द्वारा बनाए गए भोजन को भी नहीं स्वीकारते और विदुरानी के भाव प्रभाव में केले के छिलके भी बड़ी खुशी से खा जाते हैं। आगमन की बेला में इस कथा के प्रथम वक्ता श्री शुकदेव जी के जन्म की अद्भुत कथा से किया। संगीतमय भागवत कथा के दौरान सुंदर भजन प्रस्तुत किए। शाम को भगवान शिव का रुद्राभिषेक भी कर्मकांडी ब्राह्मण द्वारा कराया गया । कथा श्रवण करने मध्य प्रदेश के इटारसी व आस पास के शहरों से लगभग डेढ़ सौ श्रद्धालु भी नेपाल काठमांडू पहुंचे है।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
