काव्य : बापू बनकर आऊँगा – जगन्नाथ विश्वकर्मा’पृथक’ सागर

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बापू बनकर आऊँगा

आंच ना आने दूंगा वतन को
चाहे वीरगति चढ जाऊँगा।
जन्म मिला गर फिर दोवारा
तो बापू बन कर आऊँगा…।।

पहले देश को गोरे छल गय
अब अपने ही छलने लगे।
चप्पा – चप्पा कूचा – कूचा
सबको ये बतलाऊँगा।।
जन्म मिला गर फिर दोवारा
तो बापू बन कर आऊँगा…।।

आजादी का नाम है लेकिन
कोई यहाँ आजाद नहीं।
इक सत्याग्रह आजादी का,
फिर से नया चलाऊँगा।।
जन्म मिला गर फिर दोवारा
तो बापू बन कर आऊँगा…।।

हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई
कोई किसी का भाई नहीं।
भाई – भाई का नारा लिखने
दुनिया से लड जाऊँगा।।
जन्म मिला गर फिर दोवारा
तो बापू बन कर आऊँगा…।।

जगन्नाथ विश्वकर्मा’पृथक’
सागर

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