काव्य : वृद्ध जन – सुषमा वीरेंद्र खरे सिहोरा,जबलपुर

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वृद्ध जन

वृद्धों का सम्मान अब कौन कहाँ करता है
वृद्धों के घर में रहने से समाज आज का डरता है l
जिस घर में होता कोई बूढ़ा लाचार
उस घर के लोगों को लगता वो भार।।
पर मैं कहना चाहती हूं यहां उनसे
अपने बुजुर्गों को रखो प्रेम से
वृद्ध जन तो रीड परिवार की होते हैं
जो भले बुरे की सीख सदा ही देते हैं ।।
अनुभव उनके जीवन के खट्टेमीठे।
बतलाते हैं हमको जिनसे हम कुछ सीखे ।।
दुलार सभी पर वो अपना लुटाते हैं ।
छोटे बड़े सभी का वही तो ध्यान रखते हैं ।।
बुजुर्गों को अपने घर का खजाना समझो
नहीं उनको तुम बेगाना समझो ।
मान करो सम्मान करो उनका ।
प्यार आशीष हमे मिलताहै सदा जिनका ।।
दादा दादी नाना नानी ये होते हैं
जो अपने नाती पोतों का दिल बहलाते हैं।

सुषमा वीरेंद्र खरे
सिहोरा,जबलपुर

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