

महात्मा गांधी
याद आता है बचपन में पढ़ी कहानी, जिसमें एक लड़के को ज्यादा गुड़ खाने की आदत थी और उस लत को गांधी जी ने कैसे छुड़ाया था। लड़के की माँ जब अपने बच्चे को गांधी जी के पास लेकर आयी और अपनी परेशानी बतायी तो गांधी जी ने उन्हें दो हफ्ते के बाद आने को कह दिया। दो हफ्ते बाद जब लड़के को लेकर माँ पहुँची तो गांधी जी ने लड़के को बड़े प्यार से कहा-बेटा ये गंदी आदत है, इसे छोड़ दो और अपनी माँ के कहने के मुताबिक कार्य करो। लड़के को गाँधी जी पर बहुत विश्वास था और उसने वो आदत उस दिन से छोड़ दी। लड़के की माँ लेकिन हैरान थी कि अगर इन्हें यही बोलना था तो मुझे दो हफ्ते बाद फिर क्यों बुलाया। गांधी जी ने माँ की उत्सुकता का जवाब देते हुए बताया कि उनकी खुद की गुड़ खाने की आदत थी और दो हफ्ते में उन्होंने जब इस आदत को छोड़ा है तभी वो बच्चे को कह पा रहे हैं।
साउथ अफ्रीका से लौटकर आरंभ के दिनो में उन्होंने वकालत की प्रेक्टिस बम्बई में की लेकिन उसमें उन्हें पर्याप्त सफलता नही मिली। उसके बाद गाँधी जी पोरबंदर आ गये। आने के बाद वो लगातार यहां के किसानों, श्रमिकों और नगरीय श्रमिको को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरूद्ध आवाज उठाने के लिए एकजुट किया। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद उन्होंने देश भर में दरिद्रता से मुक्ति दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण व आत्मनिर्भरता के लिए, अस्पृस्यता के विरोध में अनेक कार्यक्रम चलाये। गांधी जी का ‘‘स्वराज’’ की प्राप्ति, नमक सत्याग्रह, 1942 का अंग्रजो भारत छोड़ो आंदोलन ने काफी ख्याति अर्जित की। महात्मा गांधी ने सभी परिस्थितियों में आजीवन अहिंसा व सत्य का पालन किया। ‘‘बुरा मत बोलो’’, ‘‘बुरा मत सुनो’’, और ‘‘बुरा मत कहो’’ उनके सिद्धान्त थे। गांधी जी अहिंसा के साथ-साथ कर्म के पुजारी थे। हर कार्य को वो पहले खुद अपने हांथ से करते थे, जब वो साबरमती आश्रम में थे तो शौचालय भी खुद साफ करते थे। भारत की जनता और विशेषकर महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने तथा रोजगार की भावना से उन्होंने चरखे पर सूत कातना सिखाया और खादी का प्रचार किया। साबरमती आश्रम में उन्होंने अपना जीवन बिताया और परम्परागत भारतीय पोषाक धोती व सूत से बनी शॉल पहनी जिसे वे स्वयं चरखे पर कात कर बनाते थे। सदैव शाकहारी भोजन खाया और आत्मसुद्धि के लिए लम्बे-लम्बे उपवास रखे। भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी अपनी जड़े मजबूत करती जा रही थी, देश में ब्रिटिश हुकुमत भारत की जनता को आपस में फूट डालने में, भारत की धन सम्पदा को अपने कब्जे में करने और तरह-तरह के कर और गलत कानूनों से यहां के आम आदमी का शोषण कर रही थी। देश के लोग कई विचाराधारा में बँट गये और संगठित होकर ब्रिटिश सरकार से लड़ाई नही लड़ पा रहे थे। ऐसे समय में गांधी जी का व्यक्तित्व, उनके सत्य और अहिंसा का अस्त्र, उनके एकजुट होकर अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारा और अनेक ऐसे ऐतिहासिक कदम जिन्होंने आम आदमी को एकजुट किया और भारत की सम्पूर्ण जनता गांधी जी के इस आन्दोलन में साथ देने लगी। गांधी जी का स्वराज आंदोलन और एक स्वाधीन भारत का सपना हमेशा उनके साथ बना रहा। उनके असाधारण गुणों के कारण लोग उन्हें ‘‘बापू’’, ‘‘राष्ट्रपिता’’ और कहीं ‘‘महात्मा’’ कहने लगे।
अगर हम अवलोकन करे भारत की उस परिस्थिति की, जब अंग्रेजो के अत्याचार का शिकार बेबस जनता हो रही थी, गांधी जी ने अहिंसा के साथ पूर्ण स्वराज का नारा बुलंद किया। आज हमारे देश में प्रजातंत्र है और हम अपने ही चुने प्रतिनिधियों को सरकार बनाने का मौका देते हैं। आज भी हम यह दावे के साथ नही कह सकते कि हमारा देश प्रगतिशील हो चुका है, देश से अशिक्षा, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार मिट चुका है। भारत के उज्जवल भविष्य के लिए, भारत की जनता को आत्मोन्नति के लिये आज भी हमें महात्मा गाँधी द्वारा दिखाये गये रास्ते, और उनके सिद्धान्तों को अपनाने की जरूरत है। 2 अक्टूबर गांधी जयंती के इस शुभ अवसर पर हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को हम भारतीय शत-शत नमन करते हैं। जय भारत, जय हिन्द!
सुमन चन्दा
लखनऊ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
