हमारे बुजुर्गों का आशीर्वाद – सरोज लता सोनी भोपाल

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वृद्ध दिवस के अवसर पर

हमारे बुजुर्गों का आशीर्वाद

अभिवादन शीलस्य नित्यम्
वृद्धोपसेविन:!
चत्चारि सत्य वर्धन्ते
आयुर्विद्या यशो बलम्!!

बुजुर्गों के आशीर्वाद से बढ़कर इस संसार में
कोई कीमती चीज नहीं है!
किंतु आज के समय में वृद्धो की सेवा तो दूर उनका अभिवादन करने से भी लोग कतराते हैं !अधिकांश वृद्ध जन माता-पिता वृद्धाश्रम में अपना जीवन बिता रहे हैं या घर में ही एकाकी जीवन जी रहे हैं |पहले के समय में कोई भी पहचान का व्यक्ति हो चाहे वह किसी भी समाज का हो उसे ताऊजी या चाचा जी यह दादाजी संबोधित कर उनके पैर छुए जाते थे!
और आशीर्वाद लिया जाता था!वह भी सम्मान पाकर दिल से खुश होते थे और अपना आशीर्वाद देते थे !जीते रहो ,खुश रहो, आयुष्मान भव ,दीर्घायु हो, उनके इन आशीर्वचनों में सच्ची भावना छुपी रहती थी! और शायद परमात्मा भी उनकी इन शुभकामनाओं को स्वीकार करता था !
किंतु आजकल अपने ही घर के बुजुर्गों को हम खुश नहीं करते और ना ही उनका आशीर्वाद ले पाते !अपने ही घर के बुजुर्ग आजकल बोझ लगने लगे हैं !यदि वह अधिक बीमार हो जाते हैं और हमारे आश्रित हो जाते हैं तो सेवा तो करनी पड़ती है लेकिन सेवा का सच्चा भाव नहीं रहता !हर इंसान को एक बार यह चिन्तन अवश्य ही
करना चाहिए कि समय कभी एक जैसा नहीं रहता ! कभी हमें भी किसी की सहायता की जरूरत पड़ सकती हैं!

जिन माता-पिता ने अपने परिवार और समाज के उत्थान में अपना जीवन बिता दिया और अपनी संतान को बनाने के लिए उन्हें उन्नति के शिखर तक पहुँचाने के लिए जीवन भर लगे रहे अच्छे से अच्छे विद्यालय और विश्वविद्यालयों में अपनी संतान को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवाते रहे और पढ़ लिखकर जब वही बच्चे किसी विदेशी कंपनी में सर्विस करने लगते हैं तो उन्हीं माता-पिता को आसानी से छोड़कर विदेश में जाकर बस जाते हैं और यहांँ उन्हें एकाकी जीवन जीने को छोड़ जाते हैं!
जबकि वृद्ध जन ही तो सारे रिश्ते जीवित रखते हैं! जिस घर में वृद्ध जन माता-पिता, दादा ,-दादी ,चाचा -चाची मिलकर रहते हैं वहाँ परिवार के सदस्यों पर सेवा भाव परोपकार जैसे कई संस्कार मिलते रहते हैं !वह हमें अपने अनुभवों से जीवन की कई मुश्किलों को आसान करते रहते हैं |बुजुर्ग हमारे लिए वट वृक्ष के समान है जिसके अनुभव और ज्ञान की छाया में हमें रहना चाहिए |
वृद्ध जन न सिर्फ वयोवृद्ध
होते हैं बल्कि वे ज्ञान में भी वृद्ध होते हैं वरिष्ठ होते हैं!हम
उनके योगदान को, उनके ऋण को हम कभी चुका नहीं सकते!
अब हमें उनकी सेवा सुश्रुसा सहानुभूति तथा दयालुता के द्वारा उनको प्रसन्न करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए उनकीइच्छाओं औरआवश्यकताओं का ध्यान रखना चाहिए साथ ही साथ मनोरंजन आदि के द्वारा हमें उनके दुख दर्द को दूर करना चाहिए! कहा भी जाता है जिनके घर में माता-पिता वृद्धजन होते हैं , वे बड़े सौभाग्यशाली होते हैं !अंत में कहना चाहूँगी कि –
“माता-पिता ही इस जीवन में, ईश्वर का वरदान है |
इनकी सेवा मन से कर लो यह सच्चे भगवान है !

सरोज लता सोनी
भोपाल

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