काव्य : वृद्धावस्था – एस के कपूर “श्री हंस” बरेली

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वृद्धावस्था

जीवन की दूसरी पारी,जिंदगीअभी बाकी है।

* विधा।। मुक्तक।।
1
वृद्धावस्था जीवन ,मानो वरदान होता है।
अनुभव की लिये ,अंदर एक खान होता है।।
सफर का आखिरी ,मुकाम नहीं यह तो।
फिर दुबारा चलने ,का ही नाम होता है।।
2
उम्र से बुढ़ापे का लेना देना, नहीं होता है।
विचार जवान हों तो बुढ़ापा भी नहीं होता है।।
जीने की चाह और राह ही ना हो अगर।
तोआदमी जवानी में भी,बुढ़ापे सा ही होता है।।
3
जीवन की शाम नहीं , यह तो दूसरी पारी है।
जो नहीं कर पाये , अब तो उसकी बारी है।।
कोई बंदिश नहीं उम्र की ,नया सीखने के लिए।
कुछ नया करने और सोचने की तैयारी है।।
4
नये पुराने दोस्तों संबंधियों ,से अब मिलना है।
साथ साथ मिल कर ,हँसना और खिलना है।।
उठाना बोझअपना ,जिंदा को कंधा नही मिलता।
स्वास्थ्य की तुरपन को भी, हमें ही सिलना है।।
5
वरिष्ठ नागरिक का दर्जा ,सम्मान का होता है।
कुछ काम और तो कुछ ,आराम का होता है।।
जिंदगी में अभी कुछ नया ,करने को है बाकी।
पूरे करने को उन सभी ,अरमान का होता है।।
6
समाज परिवार को,अब नई राह दिखाना है।
सुननी बच्चों की भी,बसअपनी नहीं चलाना है।।
तृप्ति और संतोष,मार्ग ही सर्वोत्तम है होता।
वृद्धावस्था को जीवन का,आदर्श काल बनाना है।।

एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली।

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