काव्य : गाँधी जयन्ती – पद्मा मिश्रा जमशेदपुर

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गाँधी जयन्ती

हेष युग मानव !,हे राष्ट्र पिता!,ओ विश्वमना ! ,उदारचेता,
हे शक्ति पुंज प्रिय भारत के,गर्वित तुमसे ही मानवता .
ओ सत्य अहिंसा व्रतधारी,ओ जन मानस के नवल हंस,
जो यशःपताका सुरभित थी, थी देख उसे दानवता हारी.
जो मंत्र सिखाया था तुमने, फिर रामराज्य को लानेका.,
भारत भू की माटी के हित,बलिदान सदा हो जाने का.
जग के अन्तः कोलाहल में,वह मंत्र आज विषदंत बना,
वह सत्य अहिंसा का पूजक ,शोषण का लघु यन्त्र बना.
मानव श्रम की प्रत्येक बूंद,माटी के मोल बिकी जाती,
भारत की स्वर्णिम हरियाली, पंकिला आज होती जाती,
जो पंथ हमें तुम दिखा गए, वह पंथ सिमटता जाता है,
बापू !,फिर आओ एक बार,इतिहास बदलता जाता है.
हम दींन आज असहाय हुए ,मिट्टी की मूर्ति बने बैठे,
अपने अंतर को बेच यहाँ, सम्मान आज गँवा बैठे.
है मूल्य नहीं कुछ सपनो का, कुर्सी मूल्य बढा जाता,
भारत माँ का उन्नत विशाल ,मस्तक भी आज झुका जाता,
कुछ भाव सुमन हम चढ़ा रहे ,हो जन मन का यह दान समर्पित
स्वीकार करो यह श्रद्धांजलि, है नव-युग का सम्मान समर्पित.

पद्मा मिश्रा
जमशेदपुर

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