

अनिल का लेखन साहित्य इतिहास में जगह बनाने के लिए नहीं है -उदयन
सागर।
पिछले कुछ दशकों में विपुल कविता कवि के इस भाव से लिखी जा रही है कि साहित्य इतिहास में उसकी जगह बन सके । किन्हीं सूचियों में उसका नाम उल्लेख हो सके । ऐसी आकांक्षा कभी भी बड़े भाषिक बदलाव संभव नहीं करती और न ही ऐसे कवियों का भिन्न मुहावरा बन पाता है। कितनी अद्भुत बात है अनिल वाजपेयी की कविता को आप किसी परंपरा के क्रम में नहीं देख सकते । इसीलिए उनके लेखन में नई भाषिक उक्तियाँ व विन्यास सम्भव हो सका। उन्होंने कभी साहित्य इतिहास में जगह बनाने के भाव से नहीं लिखा। यही कारण है कि उनका लिखा हमारे लिए अलक्षित रहा। कवि-कथाकार व समास पत्रिका के सम्पादक उदयन वाजपेयी ने उक्त विचार, अनिल वाजपेयी की कविताओं व गद्य रचनाओं के संग्रह ‘फ़ैयाज़ ख़ाँ जिनके मौसिया थे ‘ के लोकार्पण अवसर पर परिचर्चा में व्यक्त किये।
श्यामलम् संस्था द्वारा अनंत चतुर्दशी को आयोजित इस कार्यक्रम में कवि-कथाकार -प्रवचनकर्ता ध्रुव शुक्ल ने अतीत में सागर की सौहार्दपूर्ण सांस्कृतिक परंपरा का उल्लेख करते हुए उसमें अनिल वाजपेयी की बौद्धिक उपस्थिति के महत्व को कुछ प्रसंगों से साकार किया। श्री शुक्ल ने नए लेखकों के प्रोत्साहन की उनकी वृत्ति को उल्लेखनीय बताते हुए लोकार्पित कृति से कुछ उद्धरणों के माध्यम से उनके विट और भाषिक कौतुक को उनके लेखन की मुख्य शैली बताया।
प्रो सुरेश आचार्य ने पारिवारिक पृष्ठभूमि, पिता के स्वभाव के हवाले अनिल वाजपेयी के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला।
सेतु प्रकाशन नोएडा से प्रकाशित फ़ैयाज़ ख़ाँ जिनके मौसिया थे ‘ के सम्पादक मिथलेश शरण चौबे ने अनिल वाजपेयी के रचनाकार व्यक्तित्व को वर्णित करते हुए कहा कि इस संग्रह का प्रकाशन उनका हमारे लिए लौटना है। श्यामलम् की ओर से उमाकांत मिश्र, हरि शुक्ला, कपिल बैसाखिया द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया। लोकार्पण पश्चात कृति की पहली प्रति ध्रुव शुक्ल द्वारा श्रीमती स्वर्णा वाजपेयी को भेंट की गई।
वरदान होटल के सभागार में सम्पन्न इस आयोजन में प्रो सन्तोष शुक्ल, डॉ सुषमा शुक्ल, प्रो के एस पित्रे, प्रो केवल जैन, प्रो ओ पी श्रीवास्तव, बृजेश मिश्र,डॉ राकेश शर्मा, मुन्ना शुक्ला, डॉ राजाराम अजय, अतुल मिश्र, टी आर त्रिपाठी, प्रो चंदा बेन, डॉ रामावतार शर्मा, प्रो दिनेश अत्रि, पी आर मलैया, आर के तिवारी, राजू प्रजापति, डॉ चंचला दवे, लक्ष्मी नारायण चौरसिया, सीमा दुबे, मनोरमा शर्मा, प्रो अमर कुमार जैन, प्रो आनंद प्रकाश त्रिपाठी, डॉ आशीष द्विवेदी, संतोष पाठक, प्रफुल्ल हलवे, पैट्रिस फुस्केले, ममता भूरिया, हरीसिंह ठाकुर, डॉ गजाधर सागर,
वाजपेयी परिजनों सहित सागर शहर व विश्वविद्यालय से अनेक साहित्य रसिक उपस्थित हुए।
डॉ चंचला दवे

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।

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