काव्य : गज़ल – विनय चौरे इटारसी

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गज़ल

हम नहीं हैं किसी का घर तुड़ाने वाले ।
हम तो हैं हर किसी का घर बसाने वाले।।

तुम यूं ही नहीं रहा करो सूने घर में ,
हम तो हैं जो मोहब्बत सिखाने वाले ।

ऐसा होता नहीं है कि वो गलती न करें ,
कुछ अपने ही होते हैं आग लगाने वाले ।

उसकी आदत तो होती है डांट खाने की ,
मना लो वरना बहुत मिलेंगे मनाने वाले ।

कभी – कभार तकरार भी होती है जरूरी ,
बस ये ही पल तो होते हैं प्यार बढ़ाने वाले।

विनय चौरे
इटारसी

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