कहानी : वृद्धाश्रम – किरण काजल बेंगलुरु

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वृद्धाश्रम

मेरा घर शहर से दूर एक शांत जगह पर है । शहर की चकाचौंध से अलग बिल्कुल ही शांत।
मैं अक्सर ही अपने बिजनेस के सिलसिले में बाहर रहता हूं कभी कभी अपने घर आता हूं। मेरे घर के नजदीक एक वृद्धा आश्रम है। मैंने आज तक कभी उसे अंदर से नहीं देखा लेकिन मेरी बहुत इच्छा है कि मैं एक दिन वृद्धाश्रम जाऊ और वहां के लोगों से मिलु। मैं अक्सर ही रात को लेट लौटता हूं ।फिर जब मैं अपनी खिड़की के पास ठंडी हवा खाने के लिए आता हूं तो मैं देखता हूं की एक बूढ़ी औरत अपनी खिड़की पर खड़ी मुरझाए चेहरे मैले कुचैले कपड़े उदास नजरों से आकाश की तरफ देखते रहती है ।उसे देख कर मैं यह सोचने लगता हूं। इतनी रात गए यह बूढ़ी अम्मा खिड़की के पास क्यों खड़ी है। यह सोई क्यों नहीं अभी तक ऐसे बहुत से सवाल मेरे मन को उथल-पुथल मचा देती है ।फिर बहुत देर तक मैं उसे ही देखते रहता हूं। और फिर कहीं मैं जाके सो जाता हूं ।हर रात मैं सोचता हूं कल मैं जाऊंगा। उस बूढ़ी अम्मा से मिलने पर फिर सुबह काम में इतना व्यस्त हो जाता हूं ।की मेरा ध्यान ही नहीं रहता और मैं नहीं जा पाता। फिर जैसे ही रात को मैं अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ा होता हूं ,फिर मुझे वह बूढ़ी अम्मा दिखती है और फिर मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आता है ।कि मैं थोड़ी देर के लिए इनसे मिलना चाहता हूं। कि यह हर रात ऐसे ही क्यों खड़ी रहती है ।यह क्यों नहीं सोती और फिर बहुत देर उनके सवालिया निगाहों को देखता रहता। और वह एकटक आकाश की ओर इसी तरह शायद उनकी आंखों में ही उनकी रातें कट जाती एक दिन सुबह जब मैं ऑफिस के लिए निकल रहा था ।उस समय मैं वृद्ध आश्रम के पास से ही गुजर रहा था ।बाहर मुझे सड़क के किनारे वृद्धाश्रम का दरबान मिला। मैं सोचा थोड़ा पूछता हूं उसके बारे में ,जो कि एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था ।नमस्ते अंकल बोल के रुका उन्होंने कहा नमस्ते ,पर मैं आपको नहीं जानता। फिर मैंने उनसे कहा मैं यही पास वाले बिल्डिंग में रहता हूं। और फिर उस बूढ़ी अम्मा के बारे में पूछा तो उन्होंने कहां क्या बताएं साहब ।बड़ी दुखियारी है बेचारी और हो भी क्यों ना ।उसके साथ हुआ भी तो कुछ ऐसा ही है ।अब तो बस वह अपने अंत का इंतजार कर रही है। इतना बोल कर वह दरबार चला गया क्योंकि उसे अंदर से किसी ने आवाज लगाई थी ।फिर मैं भी अपने रास्ते हो लिया ।रास्ते में ऑफिस जाते वक्त मैं यही सोचता रहा ।ऐसा क्या हुआ उस बूढ़ी अम्मा के साथ ।आज शाम को मैं घर जल्दी आऊंगा और घर आने से पहले ही मैं उस अम्मा से मिल कर जाऊंगा ।ठीक वैसे ही वह अपना सब काम आज, कल पर छोड़ जल्दी वापस आया और वृद्धाश्रम के पास रुक गया। और उस अंकल को आवाज लगाई ।दरबान ने कहा अरे साहब आप ।और फिर पूछा बताइए क्या काम है आपको ।तो मैंने कहा अंकल मुझे उस बूढ़ी अम्मा से मिलना है तो अंकल ने कहा – यह नहीं हो सकता मैंने पूछा क्यो ? तो उन्होंने बताया वह किसी से नहीं मिलती हैं। ना ही वह अपने कमरे से बाहर निकलती है ।पर फिर भी मेरे बहुत जिद्द करने पर उन्होंने कहा ठीक है ।आप खुद ही कोशिश करके देख लीजिए। मैं अंदर गया उनके कमरे के सामने खड़ा हो गया ।फिर मैंने दरवाजा खटखटाया थोड़ी देर बाद वह बुढ्ढी अम्मा ।डबडबाई आंखों के साथ दरवाजा खोला। मुझे सामने देख थोड़ी घबरा गई और बोली कौन ह?
आप और यहां क्यों आए हैं ।मैंने कहा नमस्ते मां जी मैं यही थोड़ी दूर पास के बंगले में रहता हूं ।और मैंने कहा तो बुढ्ढी अम्मा ने कहा यहां क्यों आए हो।मैं बोला मुझे आपसे कुछ बात करना है ।तो वह बोली क्या बात करोगे मुझसे ।मैं किसी से बात नहीं करती मुझे अच्छा नहीं लगता। बात करना मेरे बहुत कहने पर उन्होंने कहा ठीक है। बोलो तब मैंने उनसे पूछा मां जी आप हर रात खिड़की पर खड़े आकाश की ओर क्यों देखते रहते हैं ।आप सोती क्यों नहीं है। मैं अपने बंगले से खिड़की पर जब भी आता हूं ।आपको खिड़की के पास ही आकाश की ओर डबडबाई आंखों से देखते हुए ही पाता हूं ।क्यों मां जी ऐसा क्या हुआ आपके साथ कि आप इस तरह से उदास रहती है ।पहले तो थोड़ा रोने लगी आंखों से उसके आंसुओं की धारा रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ।फिर जैसे तैसे खुद को संभालते हुए उन्होंने बताया कि वह एक बड़े घर की बेटी है ।
कुछ साल पहले उसके पति उसे छोड़कर इस दुनिया से चले गए ।बच्चे बड़े हो गए थे ।उनकी शादी हो गई बड़े-बड़े पोस्ट पर काम करते थे ।अब उन्हें मुझे मां कहते हुए शर्म आती है ।वह मुझे अपने साथ नहीं रखना चाहते ।उनके दोस्त आते हैं तो उनको अच्छा नहीं लगता कि मैं उनके सामने आ जाती हूं ।उन्हें लगता है मैं उसकी बेज्जती का कारण बन जाती हूं ।इसलिए मेरे बच्चों ने मुझे यहां इस आश्रम में छोड़ दिया है। या यूं कहो कि मुझे अपने ही घर से निकाल दिया हैं। यहां में ठीक हूं पर अपने घर अपने बच्चों के बिना एक औरत कैसे ठीक रह सकती है ।यहां चारदीवारी के अंदर बंद कमरे में दर्द और सिसकियों के सीवा कुछ भी नहीं है ।जो दिन के उजाले में सामान्य सा दिखने वाला यह आश्रम शाम होते हैं दर्द भरी सिसकियों और आंसुओं में डूब जाती है ।जो दर्द हमें हमारे अपनो ने दिया है। ऐसा दर्द जिससे कोई ब्यान नहीं कर सकता। सिर्फ उसे महसूस करता है ।जैसे ही शाम होती है ।यहां इस आश्रम में हमारी जिंदगीयों की भी शाम हो जाती है। रात में खिड़की पर मैं सुबह होने का इंतजार नहीं करती। मैं तो ये इंतजार करती हूं ।कि काश मेरी जिंदगी की कब शाम हो जाए ।और मैं चली जाऊं। मैं नहीं जीना चाहती पर अपनी बच्चों पर यह कलंक भी नहीं लगाना चाहती कि उसकी मां ने आत्महत्या कर ली। इसलिए जी रहे हैं ।हमें नींद कहां आती है ।हमें किसी तरह की कोई खुशी कहां महसुस होती हैं।बस यूं ही जब तक शरीर में जान है हम जिए जा रहे हैं। पता नहीं यह सांस की डोर कब छूट जाए ।इस आश्रम की दिन और रात किसी कारागृह की काली रात से कम नहीं होती ।यहां पर रहने वाली हर एक लोग हर दिन हर पल मरते हैं हमारे समाज के ठेकेदार बड़े-बड़े भाषण देने वाले वृद्धाश्रम में दान देनेे करने वाले लोग ।लाखों लाखों रुपए दान में देने वाले उनके नाम से वृद्याश्रम चलाए जाते हैं। उनकी ही मां उन्हीं के दान दिए हुए रुपयों से उनके ही नाम पर चलाए जाने वाले वृद्याश्रम में शरण लेते हैं ।बोलते बोलते अम्मा जोर जोर से सुबने लगी और फिर वो आगे कुछ ना बोल पाई ।मैं चुपचाप सा बस उन्हें देखता ही चला गया। मैं सोचने लगा कितना दर्द है ।यहां इस आश्रम में कितनी मांऐ ना जाने कौन से जन्म की पापों के कारण उन्हें यह दुख भोगना पड़ता हैं ।फिर मैंने बड़ी मुश्किल से उनको चुप कराया ।ना जाने क्यों मेरा मन बहुत भावुक हो रहा था।
शायद उनकी बातें सुनकर।उस वक्त तो मैं वहां से चला आया ।उन से बोल कर की कुछ जरुरी काम आ गया हैं
मैं फिर आऊगा ।अम्मां जी और आपको अपने साथ अपने घर ले जाऊगा।मां जी कुछ बोल पाती इससे पहलें ही मैं वहा से निकल चुका था।वहा से आने के बाद मूझें कुछ अच्छा नही लग रहा था ।इसलिये मैं जल्दी ही अपने कमरे में चला गया था ।मैं रह रह कर उस अम्मा के बारें में ही सोच रहा था।मेरा मन कुछ अशांत सा हो गया ।कुछ सोचते हुऐ जैसे ही मैनें खिड़की का दरवाजा खोला की शायद अम्मा जी भी खिड़की के पास आ गई होंगी।ये क्या आज तो अम्मा जी खिड़की के पास नही आई। मैं और भी घबरा गया और सोच में पड़ गया ।ना जाने क्या हुआ होगा। इसी कशमकश में रात गुजर गई और मैं जल्दी सुबह तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल पड़ा ।रास्ते में मैं उस वृद्धा आश्रम के दरबान से मिला और मैंने बड़ी उत्सुकता के साथ उस अम्मा जी के बारे में पूछा। दरबान बहुत खुश होकर मुझे बताया ।पता नहीं साहब यह चमत्कार कैसे हो गया। आपके जाने के बाद कल पहली बार वह अम्मा जी हम लोगों से बातें की।और खुश भी लग रही थी।शायद उन में जीने की उम्मीद फिर से जाग उठी हैं। इतना सुनते ही मैं भी खुशी खुशी अपने दफ्तर की तरफ निकल पड़ा ।दफ्तर जाते समय रास्ते में मैं सोच रहा था ।कि आज ही शाम को घर जाते वक्त। मैं अम्मा जी को अपने घर ले जाऊंगा ।आज मैं किसी तरह उन्हे मना लूंगा ।और फिर हम दोनों साथ ही रहेंगे। ऑफिस का काम खत्म कर मैं जल्दी-जल्दी घर आ रहा था ।रास्ते में मैं आश्रम गया और वहां के ऑफिस में मैंने बात की ,मैं अम्मा जी को अपने साथ अपने घर ले जाना चाहता हूं। वह भी खुशी-खुशी मान गए ।और फिर मैं अम्मा जी के पास गया ।और उन्हें नमस्ते करके मैंने उनसे बात करना शुरू किया ।जो मुझे देख कर बहुत खुश हो गई। मैंने उनसे कहा अम्मा जी आप बहुत अच्छी है ।मैं बिल्कुल अकेला हूं मेरा इस दुनिया में कोई भी नहीं है। भगवान का दिया हुआ सब कुछ है मेरे पास, पर मैंने अपनी मां को कभी नहीं देखा ।मैनें जब से आपको देखा ,आप में मूझें मेरी मां दिखती हैं।अम्मा जी क्या आप मेरी मां बनकर मेरे घर में मेरे साथ रहेंगी। मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझूंगा। इतना सुनते हैं उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे और उन्होंने बेटा कह कर मुझे गले से लगा लिया ।मैं भी भावुक हो गया ।फिर हम दोनों वहां के सभी लोगों से विदा लेकर जैसे बाहर निकले दरवाजे के पास वही दरबान हाथ जोड़े खड़ा था । गम और खुशी के बीच लड़खड़ाते हुए शब्दों में उन्होंने मुझे धन्यवाद कहा ।उन्होंने कहा साहब अगर इस समाज में आप जैसे चंद लोग और हो जाए तो शायद इस समाज को किसी भी वृद्धाश्रम की कभी जरूरत ही ना पड़े। मैंने भी हाथ जोड़कर उनको धन्यवाद कहां और अपने घर की तरफ निकल पड़ा!
संयोग से उस दिन मातृदिवस था !

किरण काजल
बेंगलुरु

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