काव्य : बचपन – सुमन युगल मुजफ्फरनगर

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बचपन

वसंत मेरे जीवन के जब से बीते हैं पचपन
पिताजी का मेरे लौट आया है बचपन
ये बचपन टूटता भी बहुत है
ये बचपन रूठता भी बहुत है
न सपने सलोने,न मांगे खिलौने
नहीं बूट मांगे न पहने ये अचकन
पिताजी का मेरे लौट आया है बचपन
ये बचपन कभी मधुमास भी है
ये बचपन देखो उदास भी है
ये बचपन ज़रा मुस्कुरा दे अगर
मुखड़े पे खिलते पलाश भी हैं
पर इसमें नहीं मृग छौने सी भटकन
पिताजी का मेरे लौट आया है बचपन
कभी ये बचपन है अग्नि का गोला
कभी ये बचपन है बचपन से भोला
कभी कहता किस्से कहानी बहुत- सी
कभी ठान बैठे ये सबसे अबोला
इस बचपन में दिखता मुझे मेरा बचपन
पिताजी का मेरे लौट आया है बचपन
बड़ों की दुआ लेके घर से जाओ
पास बैठो ज़रा बतियाओ
कुछ इनकी सुनो , कुछ अपनी सुनाओ
रहेगी नहीं फिर कोई भी अटकन
पिताजी का मेरे लौट आया है बचपन।
ये बचपन खेल कोई न खेले
जीवन के मेले में फिरता अकेले
ये थाती तुम्हारी है इसको संभालो
इसे आगे बढ़कर गले से लगा लो
मिलेगा नहीं अब दुबारा ये बचपन

सुमन युगल
मुजफ्फरनगर

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