

अनंत चतुर्दशी
रूप अनंत का करके धारण धरती पर आए स्वयं नारायण”
पूजा जप तप मंत्र उच्चारण करते हैं हम आपका आवाहन।।
गणपति विसर्जन के तुरंत बाद ही आते हो आप भगवन।
चौदह लोकों के कल्याण की खातिर चौदह रुप धरे तुम स्वामी।।
तब से शुरू हुआ अनंत अनुष्ठान जय जय हे अनंत भगवान।
चौदह गांठों का यह धागा रक्षा कवच बना जगत का,
पूजन करे जो अनंत भगवान का,मिले जगत सम्मान।।
धूप दीप नैवेद्य तुलसी से प्रसन्न हो जाते अनंत भगवान।
पांडवों ने जब किया चौदह बरसों तक अनंत अनुष्ठान ।।
राज्य हुआ निष्कंटक और हुआ जगत कल्याण।
फिर किया अनंत अनुष्ठान ऋषि कौंडिन्य ने।।
प्रसन्न हुए उन पे भी परम दयालु अनंत भगवान
और दूर हुए सारे दरिद्रता दुःख कष्ट और संताप।।
मनोवांछित फिर फल दिए दिए अनुपम वरदान।
मोह माया से मुक्ति मिले और मिले मोक्ष ज्ञान।।
अनंत अनंत अनंत दुःखों का है एक निदान”
अनंत अनुष्ठान दिलाएं खोया मान सम्मान।।
– किरण काजल
बेंगलुरु

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
