

मणिपुरी शॉल
दूर लाउडस्पीकर से फिल्म तेजाब का गाना सो गया ये जहॉं सो गया आसमां सुनाई दे रहा था। फिल्म नयी-नयी हॉल में लगी थी और लोग इस गाने को बहुत पसंद कर रहे थे। संध्या बालकनी में खड़ी इस गाने का आनंद ले रही थी। संध्या का अभी हाल ही में विवाह हुआ था और वे अपने पति की पोस्टिंग में मयांग-इम्फाल रहने आयी थी।
इंफाल से 25 से 30 कि0मी0 दूर मयांग-इफाल मणिपुर का एक छोटा सा गॉंव है। इम्फाल पहुंचने के बाद लोकल बस से लगभग एक घंटे के सफर के बाद मयांग इम्फाल आता है। संध्या और उसके पति बस से इंफाल आने जाने लगे थे। पूरे बस में मणिपुरी औरतें मछली का टोकरा लेकर बैठी दिखती थी। बस की खिड़की से देखने पर प्रकृति का अद्भुत नजारा देखने को मिलता, चारो तरफ पहाड़ियो से घिरा, धान के फसलों से भरी खेत, जैसे किसी ने प्रकृति को हरे चादर से ढक दिया हो। लौटते वक्त ज्यादातर शाम हो जाती थी और सूर्य अस्तांचल में ढूबता ऐसा दिखता मानो कोई लाल गोला पहाड़ो से नीचे उतर रहा हो। संध्या मयांग-इंफाल में दो मंजिले घर पर ऊपर के तल्ले में रहती थी, घर ज्यादातर इंटो और टीन से बना हुआ था। ज्यादातर जगहों में लकड़ी का प्रयोग था। पीने का पानी और घर में इस्तेमाल होने वाले पानी के लिए मकान मालिक द्वारा जल संयचन का फार्मूला अपनाया गया था, पानी टीन से होता हुआ पाइप के सहारे एक हॉज में इकठ्ठा होता था। मकान मालकिन की लड़कियॉं शांती देवी और इबेमा देवी दोनो संध्या से घुल मिल गयी थी और कई बार फुर्सत में हिन्दी सीखने की कोशिश करती थी। मणिपुर में ठंड बहुत ज्यादा पड़ती थी और बारिश भी बहुत होती थी। लोग अपने घरों में ही लकड़ी के फ्रेम में ऊनी शॉल बनाने का काम करते थे। सुन्दर-सुन्दर लाल-पीले हरे रंग का प्रयोग कर खूबसूरत शॉल वीविंग की जाती थी।
शनिवार या रविवार को संध्या ज्यादातर बस से इंफाल जाती और अपनी जरूरत का सारा सामान इंफाल से लाती। इंफाल का बाजार बहुत ही मनमोहक था, सभी दुकाने महिलाओं के देख-रेख में थीं। मणिपुरी परिधान में लड़किया बहुत ही खूबसूरत दिखाई देती थी।
कार्यालय में छुट्टी थी। संध्या को मकान मालिक लेशेराम विजोय सिंह की बेटियो ने बताया आज चिरौबा डांस होगा भाभी तुम भी चलना। सब लड़का लड़की मिल के डांस करेगा। वहॉं के स्थानीय लोग इसे चन्द्र नववर्ष या बसंत महोत्सव के रूप में मनाते हैं। इंफाल स्थित चैरा ओचिंग पहाड़ी की चोटी पर लोग चढ़ते हैं वहॉं पूजा करते हैं फिर वहां से उतरने के पश्चात रात में धाबल चोडवा अर्थात चांदनी रात का नृत्य होता है। संध्या और उसके पति ने भी उन सब के साथ नृत्य किया और केले के पत्ते में परोसा पारम्परिक भोजन किया। उन दोनों को ये त्योहार काफी आकर्षक और अलग सा महसूस हुआ।
कुछ दिनो से लगातार बारिश हो रही थी। इंफाल से लौटते संध्या और उसके पति पूरी तरह भीग गये थे। बारिश के साथ ठंडक भी पड़ रही थी। अचानक संध्या की तबियत खराब होने लगी और ज्वर से उसका शरीर तपने लगा। रात काफी हो रही थी, संध्या की तबियत लगातार बिगड़ रही थी। बुखार में वो बेहोश जैसी होने लगी और लगातार कॉंप रही थी। अगल-बगल कोई डाक्टर भी नही था। डाक्टरी इलाज के लिए लोग इंफाल जाते थे। ज्यादातर पहाड़ी इलाके में रहने वाले लोग अपने घरेलू दवाइयॉं, जड़ी-बूटी, पत्ते का काढ़ा और कई तरह के लेप से बिमारियों का इलाज करते थे। लेशराम विजोय सिंह की पत्नी और दोनो लड़कियॉ पूरी तरह से संध्या के उपचार में लग गयी। कई तरह के लेप, माथे में पानी की पट्टी और कई जड़ी-बूटी को कूट कर दवा बनाई गई और संध्या को लगातार देते रहे। संध्या के पति को उन्होने बाहर बैठा दिया और बोली हमलोग ठीक कर देगा घबराने का बात नहीं। सुबह होने तक सब संध्या के पास ही रही, लड़किया भागती-दौड़ती रहीं, कभी दवा, कभी काढ़ा। करीब सुबह के 10 बजे संध्या ने ऑंख खोला और धीरे-धीरे बुखार उतरता चला गया।
पहाड़ो में रहने वाले का विश्वास और प्रकृति का सान्निध्य, जैसे उनकी अमानत है। जड़ी-बूटी आयुर्वेदिक औषधियों के बारे में जानकारी जैसे उनके कण-कण में बसी है। संध्या धीरे-धीरे ठीक होती गयी। इस घटना के दस-पन्द्रह दिन बाद संध्या के पति का ट्रांसफर गोहाटी हो गया और संध्या को भी वहां के स्कूल में नौकरी मिल गयी। कार्यालय की तरफ से अच्छा खासा मकान और कई सुविधायें उनको दी गई। वहॉं से निकलते वक्त दोनो बहने शांति देवी और इबेमा देवी ने उसे रंगीन ऊनी धागो से बना खूबसूरत मणिपुरी शॉल भेंट किया। दोनो लड़किया और संध्या भावुक हो उठे भाभी इस शॉल को ओढना जरूर और हमें याद करना।
आज इस बात के करीब तीस साल बीत चुके हैं। संध्या और उसके पति गुडगॉंव में रहते हैं। संध्या ने उस शॉल को बहुत सुरक्षित तरीको से अपने ट्रंक में सहेज कर रखा है। ठंड का मौसम आते ही वो बहुत प्यार से उसे अपने ट्रंक से निकाल कर ओढ़ती है। मणिपुरी शॉल उसे अनायास ही मणिपुर की याद दिला देता है और वो जैसे हरे-भरे खेत और स्वच्छ मणिपुर की आबो हवा में खो कर रह जाती है।
सुमन चंदा
लखनऊ

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
