

मन की मुराद
कब से आस लगाकर, तेरी राह का रास्ता देखता हूँ।
ख्वाबों में तुमको पाकर, मैं खुद में ही निखरता हूँ।
सुबह आँखे खुलते ही, बस तेरी ही यादें आती है।
तुमको अपने पास ना पाकर, बाहें आहें खाती है।
दिनभर के कामों में भी, बस वही दिखाई देता है।
जिसकी आवाज सपनों में, हर रोज सुनाई देता है।
शाम को घर आते ही, बस उसकी बातें होती है।
जिसके बिना मेरे जीवन की, हर एक रातें रोती हैं।
पास होकर भी मेरे तुम, कुछ दूरी पर क्यों रहते हो?
अपने घर में आने से ही, इतना क्यों तुम डरते हो?
तुमको ही पाने की ख़ातिर, हर रोज मुरादें करता हूँ।
मंदिर मस्जिद में जाकर, करबद्ध फिरयादें करता हूँ।
– डॉ. कृष्ण कान्त मिश्र
आजमगढ़ उ०प्र०

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
