काव्य : अमृतवर्षम – इंजिनियर अरुण कुमार जैन फ़रीदाबाद

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अमृतवर्षम

सतत प्रवाही माँ गंगा सी, निर्मल, निश्छल धारा,,
पल पल जग को जीवन देने, वाली प्यारी माता.
परोपकार सेवा की लम्बी,
सत्तर वर्ष की गाथा,
कोटि नमन, वंदन जग जननी,
अमृतानंद मयी माता.
केरल तट पर जन्म लिया माँ,
ममता अमृत देने,
दलित, प्रताड़ित, वंचित,
जन को सम्बल, संरक्षण देने.
सकल विश्व में ममता, नेह, अनुराग से जो भी वंचित,
उन सब को मन वांछित देकर,
किया नेह प्रक्षालित.
जड़, चेतन सब इस वसुधा के,
तेरी महिमा गाते,
आनंद, समृद्धि, प्रगति के पथ,
आगे बढ़ते जाते.
आलिंगन, संरक्षण, ममता,
प्राणी मात्र को मिलता,
व्यथित,प्रताड़ित, वंचितजो भी,
जीवन सदा संवरता.
70 वें अमृत वर्षम पर,
करते हम सब वंदन,
जग उद्धारक माँ का पाएं,
हर युग में संरक्षण.
प्रभु अनुकम्पा माँ पर नित हो,
स्वस्थ, शतायु हों वे,
इस कलयुग में सतयुग की, जीवंत प्रतीक बनी जो.

इंजिनियर अरुण कुमार जैन
फ़रीदाबाद.

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