

ये सफर
सफर पर चल पड़ी हूँ मैं
मंज़िल की न खबर है।
राहें बनती जा रही है,
इरादे मेरे बेसबर है।
मेरे साथ-साथ चलने लगे हैं रास्ते
मंजिल से बेहतर है यह रास्ते।
चली जा रही हूँ मैं बहुत दूर,
जहाँ पर खिला है प्रकृति का नूर
चली हूँ मैं जिस सफर पर।
उसका कोई अंजाम तो होगा
जो हौसले दे सके ऐसे
कोई जाम तो होगा।
जो दिल में रखी है,
कामयाबी को
अपना बनाने की उम्मीद, तो
उसका कोई इंतजाम भी होगा।
– स्नेहा सिंह, प्रयागराज

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
