गणेश जी और स्वास्थ्य – सरोज लता सोनी भोपाल

412

गणेश जी और स्वास्थ्य

संसार में प्रत्येक प्राणी मोक्ष की कामना करता है -धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चारों आयाम मनुष्य के लक्ष्य स्वरूप हैं और मनुष्य इन्हें पाने का हर समय प्रयास करता रहता है!
इस समय गणेश उत्सव खूब धूमधाम से मनाया जा रहा है और हम सभी गणेश जी की आराधना करते हैं!
गणेश जी के जिस विराट स्वरूप की हम आराधना करते हैं उसका वैज्ञानिक एवं अलंकारिक स्वरूप भी है! उनकी प्रतिमा दार्शनिक तथ्यों को तो दर्शाती ही है साथ ही योगिक क्रियाओं की भी द्योतक है!अतएव उनके इस स्वरूप का स्वास्थ्य से भी गहरा संबंध है!
गणेशजी को जितने भी नामों से पुकारा जाता है वे सब उस परमपिता परमात्मा के ही नाम हैं ! इसीलिए जब हम किसी कार्य को प्रारंभ करते हैं तो सर्वप्रथम गणेश जी अर्थात् परमपिता परमेश्वर का ही नाम लेते हैं गणपति ,गणेश जी , अष्टविनायक ,विघ्नहर्ता यह सब परमात्मा को ही संबोधित किए गए है! जो उनके गुण कर्म और स्वभाव के अनुसार बताए जाते हैं! जैसे गणेशजी ( गण+ईश ) अर्थात् गण जो प्राणी मात्र के समूह के स्वामी!( ईश्वर) हैं और महान ऐश्वर्यों के स्वामी हैं!गणपति गणों के स्वामी और रक्षक हैं !सभी के दुखों को दूर करने वाले विघ्न- बाधाओं को दूर करने वाले हैं इसलिए विघ्नहर्ता हैं, अष्टविनायक हमारी रक्षा करने वाले हैं! वह अष्टांग योगी है और हमारे सभी सूक्ष्म तथा स्थूल अंगों के रक्षक हैं! आठों प्रकार की निधियों के स्वामी है!उनकी प्रतिमा का योगिक रूप
अष्टांग योग के आठों अंगों का पालन करने को प्रेरित करता है जिससे हमें रिद्धि- सिद्धि की प्राप्ति हो सकती है!
इन दिनों वर्षाकाल में हवा में नमी होने के कारण अनेक प्रकार के रोग फैल जाते हैं, इस समय यदि हम नियम पूर्वक दिनचर्या को अपनाएँ तथा रात्रि का भोजन का त्याग करें तो बीमारियाँ हम पर हाबी नहीं हो पायेंगी !
इन दिनों ब्रत- उपवास भी इसी दृष्टिकोण से बनाए गए हैं!उनकी प्रतिमा की प्रत्येक आसान कहीं पद्मासन ,कहीं बज्रासन, कहीं सिद्धासन, तो कहीं वीरासन, कहीं सुखासन यह सब स्वास्थ्य की दृष्टि से अलग-अलग आसनों को दर्शाती हैं उनकी पूरी प्रतिमा अष्टांग योग के दार्शनिक रूप की द्योतक है !
अष्टांग योग के अंतर्गत हमें पाँचों (१)यम- जैसे- -सत्य ,अहिंसा, अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन करना चाहिए!
(२)पाँचों नियम— जैसे -शौच, संतोष ,तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान करें!
(३)आसन— जो कई प्रकार के स्वास्थ्य की दृष्टि से और वैज्ञानिक आधार पर बताए गए हैं !और आध्यात्मिक आधार पर भी बताए गए हैं!
(४)प्राणायाम –जैसे- भस्त्रिका,
कपालभाति ,अनुलोम- विलोम आदि जो हमारे अष्ट चक्र को नियंत्रित तथा संतुलित बनाते हैं !जो हमारे स्थूल शरीर को स्वस्थ रखते हैं !
(५) प्रत्याहार _शुद्ध एवं उत्तम, सात्विक भोजन करना!
(६) धारणा –ईश्वर में धारणा एवं विश्वास जो आत्मा का भोजन कहलाता है ईश्वर का भजन करना !
(७)ध्यान– जो योग की चरम सीमा है !ध्यान में बैठकर घंटों परमात्मा में अपने को एकाकार करना प्रभु का ध्यान करना!
(८) समाधि–यह योग का अंतिम चरण है ! समाधि से ही सिद्धि की प्राप्ति होती है!
जो गणेश जी की दोनों पत्नियों के रूप में बताया गया है जैसे रिद्धि यानी संपन्नता स्वास्थ्य रूपी धन से भी और भौतिक रूपी धन से भी ,!सिद्धि जो आध्यात्मिक धन की प्राप्ति होती है जो मोक्षदायिनी होती है|
सिद्धि प्राप्त कर कई महर्षि एवं साधु महात्मा लोगों का उपकार करते हैं !इस प्रकार स्वास्थ्य और अलंकारिक व योगिक रूपी गणेश जी की हम वंदना करते हैं! जिसका मूल आधार योग और साधना है जिससे हम जीवन के परम लक्ष्य “धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष “की प्राप्ति कर सकते हैं!

सरोज लता सोनी
भोपाल

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here