व्यंग्य : आदरणीय की लांचिंग – आत्माराम यादव ,वरिष्ठ पत्रकार,नर्मदापुरम

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व्यंग्य

आदरणीय की लांचिंग – आत्माराम यादव

देश के 140 करोड़ लोग माननीय लालकृष्ण आड़वानी को सम्माननीय प्रधानमंत्री के पद पर देख रहे थे और प्रतिष्ठा प्राप्त करने की दौड़ में शामिल नरेन्द्र मोदी जी उनकी हर आमसभाओं में उनके भाग्यविधाता बनने की साक्षी भीड़ को इज्जतदार की तरह निहारा करते थे। श्री मोदी जी एक प्रदेश के मुख्यमंत्री के रहते अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के गुरू के साथ रहकर कछुआ चाल से आगे बढ़ रहे थे, वे राजनीति के चाणक्य मस्तिष्क में स्वयं को भाजपा का अदना सा कार्यकर्ता बतलाकर कर कब लालकृष्ण आडवानी के गले में बैठकर भाजपा के पेट में बैठ गये, उनका यह संजोजकत्व आड़वानी जी को पता ही नहीं था। आड़वानी स्वयं को केन्द्रधुरी पर रखकर देश की राजनीति कर रहे थे जिसमें कार्यक्रम और सिद्धान्त की राजनीति गायब थी। बूढ़े आड़वानी जी की इस फिसलन भरी राजनीति को चेला खूब समझ चुका था और तत्काल अपने मस्तिष्क में इन सम्मानीयजनों का सम्मान स्वयं धारण कर उन्हें जमीन पर टपकाने की योजना बना उसपर अमल कर चुका था।
हमारे देश में शिष्य हमेशा गुरू को दक्षिणा देता है, पर सनातन धर्म की ध्वजा थामें शिष्य ने ही अपने गुरू से शिष्य दक्षिणा लेकर एक नया कीर्जिमान बनाया है। राजनीति के गुरू आडवानीजी खुद को चुस्त, चालाक, चतुर राजनीतिज्ञ मानते थे, पर सम्मान की लड़ाई में उनका शिष्य नरेन्द्र बाजी मार गया और खुद प्रधानमंत्री बनकर आडवानी,मुरलीमनोहर जोशी जैसे नेताओं का हाल मरे शेर की खाल में ंभूसा भरवाकर रखने जैसा करके का लोकाचार किया जिसे देश दनिया के सामने मीड़िया के प्रायोजित उनकी चरण वन्दना में माननीय आड़वानी जी को श्रद्धेय पूज्यपाद बनाकर उनसे जबरिया आर्शीवाद पाकर राज करने का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। दुनिया में योग्यता पर सम्मान पाने का चलन है, कोई कितना भी धनकुबेर हो, राजनीति में हो, पर बिना योग्यता के वे इज्जतदार नहीं होते, जनता उनका आदर नहीं करती। प्रतिष्ठा छीनकर प्रतिष्ठित होने की राजनीति भाजपा में दिखाई दी। यहाॅ आड़वानी का, मुरलीमनोहर जोशी जैसे तमाम प्रतिष्ठितों का सम्मान छीनने का नया पेटर्न देखने को मिला जिसमें जो सर्वप्रिय माननीय थे, पक्ष विपक्ष में आदरणीय थे, उनका वजूद मझधार में डूबाकर उन्हें गुमनामी के अंधकार में प्रतिष्ठित कर स्वयं के पूज्य बनाने का चलन शुरू शुरू हुआ, जो कभी मुगल शासकों की राजनीति में षड़यंत्र कहा जाता था, वह यहाॅ संसद की सीढ़ियों पर साष्टांग प्रणाम करने से उच्च आदर्श का स्वरूप धारण कर चुका था।
सम्मानीय प्रधानमंत्री पद के दावेदार आडवानी जी केे भाग्य में इस टुच्ची बीमारी से घर में रहना लिखा था, उनका दुख देखकर सारा देश सोचने लगा कि, ऐसा क्या हुआ जो आडवानी जी अपने सबसे विश्वासपात्र शिष्य का शिकार हो गये। राजनीति में यह बेईमानी आडवानी जी के लिये प्राणघातक थी, पर देश को संयम बंधाकर वे खुद को स्वस्थ्य होने का ढिंढोरा पीटते रहे। अपनी पार्टी से आडवानी जी एक पतिव्रता की तरह प्रेम करते थे, पर क्या कारण है कि कुलटा औरतों की बीमारी से होने वाली परेशानी का दंश उन्होंने खामोशी से महसूस किया। एक अन्र्तराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त राजनेता का भाग्य अपने ही चेले के सम्मान में उन्हें इस स्थिति में ला पटकेगा कि उनको प्राप्त सम्मान उनके चेले के भाग्य में उछल जाये और खुदका भाग्य टूटते तारे की माफिक बन जाये तो यह राजनीति नहीं अपितु कूटनीति कहलायेगा। खैर राजनीति में फिसलने के इस सिद्धान्त ने यह परिभाषित किया है कि पूरे विश्व में जो व्यक्ति माननीय हो उस नामचीन को माननीय के सम्मान से ओझल किया जा सकता है और गुमनामी के अंधेरे से उठाकर किसी को भी विश्वप्रसिद्ध नामचीन माननीय बनाया जा सकता है, यह बात अति उत्साही, शिष्य नरेन्द्र मोदी ने खुद को माननीय प्रधानमंत्री जैसे सम्मानित पद पर प्रतिष्ठित होकर अपने गुरू लालकृष्ण आड़वानी के सपनों को चूर-चूर कर खुद लड़ाई जीत यह साबित किया है।

आत्माराम यादव पीव ,
वरिष्ठ पत्रकार,नर्मदापुरम

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