काव्य : वक़्त – भार्गवी रविन्द् बेंगलुरु

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वक़्त

मेरी साँसें टहल रही हैं वक़्त को लिये मुट्ठी में
धूप की चादर ओढ़े बादलों के गाँव में
छेड़ रही है शोख़ हवा जैसे सरगम
सावन की चंचल अल्हड़ बौछारें
थिरक रही बाँधे बूँदों की पायल पाँव में ।

रेशमी धागे में पिरो कर सारे वो ख़्वाब मेरे
यूँ कोई आकर पैरहन में टाँक गया धीरे से
यादों के साहिल पे दम भर को ठहरा वक़्त,
इंद्र धनुष के सात रंग लिए
एक ख़ूबसूरत इबारत लिख गया नये सिरे से।

पत्तों की नोकों पर ठहरी बूँदें शबनम की
वक़्त की गिरफ़्त में कै़द ख़ुमारी ये मौसम की
समन्दर की लहरों संग अठखेलियाँ करती शाम
दुल्हन सी शरमाकर लाल हो गईं।
इत्र सा घोल गया कोई इन रेशमी हवाओं में !

भार्गवी रविन्द्
बेंगलुरु

1 COMMENT

  1. Bhargavi Maa’m,am speechless,aapke liye kya keh sakti hun,bus laga ki padhti rahun,aapki divya lekhni ko mera Pranaam 🙏🙏💐💐💐💐

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