काव्य : बेटी – किरण काजल बेंगलुरु

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बेटी दिवस

मेरी प्यारी बेटी जब से तू आई मेरी जिंदगी में,
जिंदगी मेरी ये गुलज़ार हुई……!
पाकर स्पर्श प्यारा तेरा मैं नौ नी हाल हुई
तेरी तोतली बोली मेरे कानों में मिसरी घोले
तुझे यूं लड़खड़ाते हुए चलते देख कर मेरा मन डोले
जब तू कहती अम्मा मुझे
मिल जाता है सर्वस्व मुझे
तू मेरे घर की लाडो रानी
तुझ में बसती हमारी जिंदगानी..!!

ज़मीं और आसमां दोनों का कहना है।
बेटी जीवन का सबसे सुंदर गहना है ।।

धन का श्रृंगार बेटी अनुपम उपहार बेटी।
मां का लाड़ बेटी पापा का प्यार बेटी।।

दादा जी की छड़ी बेटी दादी जी का दुलार बेटी।
रिश्तों का खिताब बेटी दो कुलों के बीच की तार बेटी।।

इज्ज़त का सरताज बेटी मनोरम त्योहार बेटी।
मिलन और विछोह का सनातन रिवाज बेटी।।

गीत और मल्हार बेटी आंगन की बहार बेटी।
जिंदगी की जान बेटी मान सम्मान और प्राण बेटी।।

घर की लक्ष्मी और दिलों कि तार बेटी।
कुमकुम सा श्रृंगार बेटी मेंहदी का निखार बेटी।।

तीज और त्योहार बेटी राखी सा उपहार बेटी।
मां की परछाई और अनुपम सोलह श्रृंगार बेटी।।

किरण काजल
बेंगलुरु

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