समीक्षा : अन्त: का उपहार है भावों की टोकरी – अशोक अश्रु विद्यासागर आगरा

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समीक्षा:
भावों की टोकरी (काव्य संग्रह)

रचनाकार: डॉ.मधु भारद्वाज
विधा: : पद्य
प्रकाशक : निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीव्यूटर्स
पृष्ठ संख्या: 92
मूल्य : 125/-

मधु जी मन मणि मालिका, शब्दों का शृंगार।
भावों की जो टोकरी, अन्त: का उपहार ।।
अश्रु

मैं मधु जी के मन की बात कर रहा हूँ। जो भावतत्व से पूरी तरह भरा हुआ है। इतना ही नहीं उनके सृजन का मूल आधार तत्व भी यही है। उनकी लेखनी से प्रस्फुटित हुए भावों की रोशनी में आप पीड़ा को मुस्कुराते हुए देखेंगे, प्रकृति के तमाम आयामों से आपका स्पर्श होगा और इतना ही नहीं आप स्वयं को विविधवर्णी तुषारछादित उपवन के फूलों की गंधयुक्त मधुयात्रा का अनुभव करेंगे। जी हाँ मैंने डॉ.मधु भारद्वाज के नवीन काव्यसंग्रह *’भावों की टोकरी’* का आद्योपांत अध्ययन किया तो मुझे यही अनुभव हुआ। उनकी कविताओं में मानव मन के निश्छल भावों की अभिव्यक्ति समायी है तभी तो विभिन्न नदियों में उठ रहा लहरों की कलकल का मधुर स्वर पाठक मन को अभीभूत करता है। संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कवयित्री स्वयं उपस्थित होकर पाठक से संवाद कर रही हैं।
भावों की टोकरी कवयित्री का तीसरा काव्यसंग्रह है। इससे पूर्व “कुछ बूँद ओस की” तथा “जियो तो कुछ ऐसे” आ चुके हैं। जो काफी चर्चित रहे हैं। इस संग्रह में 92 पृष्ठों में कवयित्री ने अपने मन के भावों को शब्दों की माला में गूंथा है। काव्यसंग्रह की तमाम कविताएँ अपनी अभिव्यक्ति के प्रकटन में जीवन की सहज अनुभूतियों और संवेदनाओं को प्रकट करती हैं और इनमें मानव मन के विभिन्न रंगों का समावेश हुआ है। जब कवयित्री का मन पीड़ा से दो चार होता है तो वह आँसू नहीं बहातीं अपितु मुस्कुराती हैं, वह इस रचना से दृष्टव्य है:-
*तुम अपने घर में क्वारंटाइन हो*
*मैं हास्पीटल में आइसोलेट हूँ।*
*तुम्हारी अमानत, जो मेरे पास*पड़ी है*
*अब और संभाल नहीं सकती*
*गुजारिश है बस इतनी-सी*तुमसे*
*एक बार तो आ ही जाओ।*
कवयित्री के सरोकारों का दायरा विस्तृत है और वैयक्तिक भावों के अलावा जगत के सामाजिक सरोकारों पर भी बेहद गहन चिंतन के साथ कविताओं का जन्म हुआ है। नारी मन की संवेदनाओं और भावनाओं को भी आपने बाखूबी उकेरा है। तभी तो आपने पृष्ठ-55 पर कहा है:-
*औरत और देहलीज़*
*का रिश्ता*
*है जन्म-जन्मांतर का*
*क्या वजह है?*
*जिसे कभी वह पूजती है*
*उसी को वह लांघती है।*
वर्तमान काल में मुक्त छंद कविताओं की चहुंदिश बयार बह रही है। मुक्त छंद कविता में पद की जरूरत नहीं होती। इसमें भाव तत्व ही प्रधान रहता है। इन कविताओं में इन्द्रधनुषीय कल्पनाएँ, हृदय में कभी ज्वारभाटा तो कभी नितांत शांति और स्वयं के अनुभवों का दिग्दर्शन होता है। इन कविताओं का विशेष गुण होता है ‘लय’ अर्थात ‘भावों की लय’ जो पाठक को स्वयं से बाँधे रखती है। “भावों की टोकरी” भी अधिकाधिक ऐसी ही कविताओं की पुष्प वाटिका है। जो पाठक को गंधयुक्त वातावरण की सैर तो कराती है, साथ-साथ उसे भावों के रेशमी धागों में बाँध लेती है। उदाहरणार्थ देखें:-
*रुई के फाओं/ जैसे बादल* /
*अठखेलियाँ/ कर रहे हैं/ कभी मुझसे/*कभी तुमसे/ बादलों के* *बीच/ उड़ रहे हैं हम/ अपने पंख* *फैलाए/ पंख अलग- अलग/ मंजिलें*भी अलग-अलग/ फिर भी*एक जैसे हम/ हौसले एक जैसे/*उड़ान एक जैसी/ मन एक*जैसे* ।
कथ्य और भाव की दृष्टि से, संग्रह पाठक मन को प्रभावित करने वाला है। कविता में भाव पक्ष की प्रधानता है और भाव पक्ष ही इसे सरस और स्मरणीय बनाता है जो कवयित्री के सृजन की विशेषता है। आज के मानव जीवन में हो रही उथल पुथल तथा युद्ध और आपदाओं की चहुंओर से आती हुई खबरों के बीच में *”भावों की टोकरी”* शीतल मंद बयार की तरह है, क्योंकि कवयित्री ने अपने हृदय से फूटने वाली भाव मन्दाकिनी के गर्भ में शब्दों को रखकर कविताओं का सृजन किया है। जहाँ शब्द, भाव के साथ नाचते ही नहीं अपितु महारास के आनंद का पर्याय बन जाते हैं। आप स्वयं देखें:-
*स्त्री प्रेम करती है/ एक बार/ दो*बार/ बार-बार/ जब तक/ उसका*कुँवारापन दूर न हो/ मन के*कोने में/ पड़ा कुँवारापन/ जहाँ*कोई पहुंच ही/ नहीं पाता/ जब*कोई पहुंचता है/ तब/ खोल*देती है वह/ अपने मन के*दरवाजे उसके लिए */ तब वह भर जाती है/ वह प्रेम से अन्तर्मन तक।*
कवयित्री के सृजन की भाषा सहज और सरल तो है ही, अपितु सुबोध भी है। जो पाठक मन में शीघ्र उतरने के साथ-साथ लालित्य का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी छोड़ती है। कवयित्री के नाम के अनुरूप उनका सृजन भी मीठा, मधुर और प्रभविष्णुता जैसे गुणों से परिपूर्ण है। इस संग्रह की कविताएँ गहरे तक प्रभावित करती हैं। *’भावों की टोकरी’* काव्य संग्रह के लिए कवयित्री डॉ.मधु भारद्वाज को शतशः बधाई।

अशोक अश्रु विद्यासागर
आगरा

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