

लघुकथा
रोबोट
उसे सब कुछ सुनियोजित, व्यवस्थित चाहिए था… सब कुछ समय पर , वह अक्सर स्वयं को कहती…
“गो बाई वाच नॉट बाई द मूड”
अर्थात समय के हिसाब से चलो मन के नहीं। परिवार और रिश्तेदारियों में उसकी मिसाल दी जाती, तारीफों के पुल बाँधे जाते।वह प्रसंशा की अटारी पर तितल्ले चढ़ इठलाती उसकी भूख-प्यास भाग जाती जैसे कोई रोबोट हो …
रोबोट और मशीनों को भी मरम्मत और आराम की जरूरत होती है पर वह न जाने कौन-सी धातु से बनी थी! एक दिन रखरखाव के अभाव में प्रोग्रामिंग गड़बड़ा गई और उसके मन की जमीन पर भावों के बिरवे उग आए । तत्क्षण पत्तियों का प्रस्फुटन हुआ और फिर फूलों का ….
फिर गंध सुवास से खिंचे चले आए भ्रमर, तितलियाँ और अन्य सभी। अपनों से में एक अलग ही आकर्षण होता है, जिसकी पहचान हो ही जाती है। उनमें से उसे भी कोई भा गया वह उससे बोलती,बतियाती रही सुबह से दोपहर,दोपहर से साँझ और साँझ से रात घिर आई। अचानक उसने देखा सब अव्यवस्थित हो गया है लोग शिकायतों के पुलिंदे थामे कतार बद्ध खड़े प्रश्न सूचक दृष्टि से उसे देख रहे थे… उसका दिल धड़क उठा इससे पहले कि रात गहरा जाए उसे कुछ करना होगा! वह जगी उसने अपने मन के कान उमेठे, भावनाओं की नदी पर बाँध बाँधा ,गालों पर छलक आए आँसुओं को पोंछा और फिर से रोबोट हो गई…
– सुमन युगल
मुजफ्फरनगर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा ‘ युवा प्रवर्तक ‘ के प्रधान संपादक हैं। साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘ मानसरोवर ‘ एवं ‘ स्वर्ण विहार ‘ के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है।
